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Shashikant Das

Tragedy

4.5  

Shashikant Das

Tragedy

पूर्ण आजादी की अभिलाषा!

पूर्ण आजादी की अभिलाषा!

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जी रहें हैँ हम आजादी के लम्हों में,

कर रहे हैं बातें देशभक्ति की बाहों में,

चल पड़े हम एकता भरे जगहों में, 

क्या देख पा रहें खुद को अमन की राहों में?


तलाश रहा है सुकून ये मन होके बंजारा,

धर्म की राजनीति नहीं थी कभी गंवारा,

जिन ल़डकियों ने हमारा जीवन था संवारा,

नापाक मंसूबों के आगे हर नागरिक है हारा।


आजादी की परिभाषा समझ नहीं पाये हम,

आंतक की भाषा का आधार नहीं हैं हम,

उन्नती के पथ पर चलना था हम सबको,

स्वार्थ के लिए देश को पीछे धकेल रहें हैँ हम।


अगली पीढ़ी का क्या जीवन होगा सुनहरा?

जब डर के रातों में लगा है अन्याय का पहरा,

दोस्तों, उखाड़ फेंकना है ये दशानन वाला चेहरा,

कहीं उगते सूरज का राज ना बन जाये बड़ा गहरा। 


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