मातृ दिवस!
मातृ दिवस!
भगवान का दिया इस कुदरत को एक उपहार अनमोल,
पवित्र है जिनके दिल और मिष्ठान से भरी हैं उनके बोल ।
वेदों और उपनिषदों में, भले ही हो उनकी गाथा अनेक,
भिन्न भिन्न रूपों में दिखती हैं लेकिन उनकी ममता है एक ।
अपने बच्चों के कष्ट और दुःख में सदेव आँसू हैं बहाती,
उनके खुशियाँ के पलों में ही चैन की नींद है वो सो पाती।
सागर की गहराई से भी गहरा है उनका निश्चल प्यार,
उनके आंचल तले ना जाने क्यूँ दिखता है ब्रह्माण्ड का सार।
अपने गर्भ से लेकर जीवनभर ढोती है हमारा बोझ वो सारा,
अपनी गरिमा को पीछे छोड़, हर पड़ाव में देती है साथ हमारा ।
आज के आधुनिक युग में, कौन कहते हैं की वह तबाह नहीं,
हमारे स्वार्थ के आगे, उनके नम भरे आंखों का कोई गवाह नहीं।
दोस्तों, ढूँढते हैं हम मंदिरों और मस्जिदों में ईश्वर की काया,
लेकिन माता के चरणों में ही तो सर्वत्र सृष्टि का सच है समाया।
