ये दौर मायूसी का
ये दौर मायूसी का
ये जिंदगी का पहिया कुछ इस क़दर चला है,
ये शाम होते ही मायूसी का दौर साथ चला है।
अब वो सुबह जो मुस्कान लाती है,
वो चाय का प्याला जो ताजगी लाती है,
जो दोस्तो संग समय बिताना इक उमंग लाता है
ये सब अमावस्या के चांद की तरह
कहीं गुम सा हो गया है।
ये जिंदगी का पहिया कुछ इस क़दर चला है,
ये शाम होते ही मायूसी का दौर साथ चला है।
घर लौटते ही शाम को,
आराम की जगह वो मायूसी
घर लौटते ही शाम को,
वो चारदीवारी कुछ कोसती।
वो बिस्तर जैसे कुछ चुभता सा है अब,
वो हर शाम का आना, इक भय सा लाता
वो जो आशावाद का संगीत गाते हैं लोग,
उनसे भी अब कुछ कुछ चिड़ सी है हो गई।
ये जिंदगी का पहिया कुछ इस क़दर चला है,
ये शाम होते ही मायूसी का दौर साथ चला है
वो दिन बहुत खूबसूरत लगते हैं, जब शाम होते ही
वो खेलने का बहाना होता था, जब सुबह होते ही
स्कूल न जाने का बहाना बनाना होता था।
वो दिन लाख गुना बेहतर थे,
जब उड़ती तितलियों के पीछे
दौड़ा करते थे, अब खुद से भागते फिरते हैं,
अब खुद को कोसा करते हैं।
ये जिंदगी का पहिया कुछ इस क़दर चला है,
ये शाम होते ही मायूसी का दौर साथ चला है।