वो गांव
वो गांव
याद आता है मुझे वो गुजरा पल सारा,
नदियों की बहती हुई वो कलकल धारा है।
इन उड़ते पक्षियों की जो ये चहचहाट है,
दूर कहीं लोगों का जंगल जाना।
हाथों में जो कुल्हाड़ी और रस्सी है,
उसमे ही तो इनकी जिंदगी बसती है।
याद आता है मुझे वो गुजरा पल सारा,
वो जंगल में गजब का शोर सा था।
लकड़ियों की काटने की आवाज,
शेर की गरजने की वो आवाज़।
दूर कहीं कलकल बहता झरना,
उस झरने का पानी पीने में जो सुकून था
कहां वो आज दुकानों में बिकते पानी में है।
बैलों और बकरियों के साथ, जो गुजरता काफिला
उसमे भी लोगों के वो किस्से कहानियां,
देखो याद आता है मुझे गुजरा हुआ पल सारा
बड़ा याद आता है, बचपन का वो गांव प्यारा।