सत्राजिति
सत्राजिति
अच्युतम केशवंम सत्यभामधवम
माधवम श्रीधाराम राधिका राधितम
--------------------------
राधा - रुक्मिणी के प्रेम का सार तुम हो,
मीरा - श्रीधामा की भक्ति का आधार तुम हो,
वृंदा - कालिंदी की परमेश्वर तुम हो
सत्यभामा से तुम्हारे रिश्ते अनेक है
मित्र,नाथ,प्रियतम
मेरे लिए सत्यभामा के माधव तुम हो
नंद यशोदा के लाल तुम,
तो मैं भी सरजीत की लाडली थी
मदन मोहन अगर तुम कृष्ण
तो मैं भी परम सुंदरी हिरणाम्य थी
तुम वेणु वादन में निपुण मुरलीधर
तो मैं भी कला कृति में उत्तम थीं
माना मैंने नहीं किशोर अवस्था में कालिया नाग का मर्दन किया हो
पर स्वयं तुमने स्वीकारा था ना मेरे बिना तुम्हारे अवतार का उद्देश्य पूर्ण हो
मेरे अभिमान के किस्से दोहराया
जाते है
जिस प्रेम में राधा दीवानी, तुम्हारे उसी प्रेम में अभिमानी थी
यह ना लोग जान पाते है
राधा रुक्मणि तुम्हारी जन्म जन्मांतर की साथी थी
क्यों जगत को याद नही भू देवी भी तुम्हारी अर्धांगिनी थी
रुक्मणि धारा सी शीतल माना
स्वामी की भक्ति में लीन थी
अगर में प्रेम में थोड़ी हठ करती क्या
मेरी तुम्हारे प्रति भक्ति काम थी?
युद्ध कला में निपुण मैं तो तुम्हारी युद्धों की साथी थी
केवल तुम्हारे प्रेम में ही तो अभिमान कर पाती थी
तुमने भी प्रेम पूर्ण हर नादानी संभाली थी
तुम्हें भी राधा रुक्मणि सी ही प्रिया सत्यभामा थी
जग को रहे शिक्यता ना मैंने रुक्मिणी सा ना तुम्हें पूजा था
पर माधव मित्रों का प्रथम हमारा अर्धांगों का रिश्ता दूसरा था
माना नहीं खुद को तुमसे ऊंचा
बस तुल्य तुम्हारा समझा था,
आखिर तुमने भी नारायण अपनी भू देवी को पहचान कर की ही चुना होगा
माना ना रुक्मिणी हरण या रासलीला सा कल्पनानशील हमारा प्रेम था
पर हमारे प्रेम में तो धर्म स्थापना का उद्देश्य छुपा था
तुमने भी मेरे हृदय को भली भांति जानते थे
कब सबसे प्रिय बताना और कब अभिमान हटाना जानते थे
जीत सकते तुम्हें सिर्फ प्रेम से सर्वप्रथम तुमने मुझे ही तो सिखाया था
स्यामंताक स्वामिनी होने का माना मैंने अभिमान किया
तुम पे अधिकार पूर्ण पाने के मैंने भूल वश साहस किया
अभिमान में चूर अधिकार से तुम्हारा दान किया
भूल गई थी नाथ तो तुमने अपने प्रेम पे स्वयं पूर्ण जग को अधिकार दिया
पर मानोगे तो तुम भी अगर ना मैं दान करती
तो क्या रुक्मणि का वो तुलसी से तुम्हें जीत लेने की भव्य लीला दुनिया देखती
कार्तिक मास दामोदर का सर्व प्रिय है
इसमें राधा रमण के सेवा सब पुण्य से अधिक अतुलनीय है
किशोर अवस्था में तुमने गोवर्धन उठा
गोकुल के रक्षक बने थे
त्रेता युग में सीता तुम राम अयोध्या लौटे थे
अब कार्तिक मास की दिव्यता में हमारी भी प्रेम कथा अमर रहेगी
यह स्मृति सदव हर हृदय में अमिट रहेगी
ना वृंदावन वन में मुझे तुम्हारी राधा बनाना है
ना द्वारकाधेश की द्वारकेश्वरी बनाना है
मुझे तो तुम्हारे साथ धर्म के लिए युद्ध लड़ना है
ना जानी जाऊं भले ही तुम्हारी सबसे प्रिय पत्नी ke रूप मै
मुझे तो तुम्हारे युद्ध की साथी बनाना है
नरकासुर को मारना भू देवी नीति थी
पर उससे लड़ने की शक्ति तुम्हारे प्रेम ने दी थी
नरकासुर तो सिर्फ प्रतीक था उस हर दुष्ट का जो प्रकत्री को बांधना चाहता है
काल ही हर नारी को महाकाली बनाता है
नरकासुर का अंत प्रकृति की मनुष्य पे विजय की प्रतीक थी
नारी का सम्मान नारायण की देख थी
जब मधुसूदन ने 16000 रानियों को स्वीकारा था
प्रश्न था सब की कैसी तुमने अपने प्रियतम पे अधिकार त्याग था
भली भांति परिचित थी उन कन्याओं के दुख से
जानती थी क्या होता अगर अपने और समाज दोनो मुख मोड़ ले
श्री कृष्ण ने तो सदैव सबको स्वीकारा है
सभी कन्याओं के अब तो अस्थलक्ष्मी सी अष्टभार्य का सहारा सा
जगत शायद ना माने मेरी हठें तुम्हें भी प्यारी थी
यूंही ही नहीं सत्यभामा परिजात की अधिकारी थी
ईर्ष्यालु अभिमानी शायद मुझे संसार देखे
ना कोई पूर्ण रूप से जानने का सोचे
क्या माधव तुम इन्हें सब बतोगे
सत्यभामा की नई छवि इन्हे दिखाओगे
तुम तो सत्राजित की प्रिय
सत्रजीति हो
तुम तो नागनजीत कालिंदी लक्ष्मणा की प्रेरणा सत्यभामा जीजी हो
भले ही जगत दिखाए तुम राधा रुक्मणि से जलती हो
पर तुम भी सच भली भांति जाति हो
जैसे लक्ष्मी नारायण ना कभी एक दूजे से अलग था
वैसी ही भू और श्री कहां एक दूजे के बिन थे
अगर सत्यभामा कृष्ण की प्रेरणा तो रुक्मणि शक्ति थी
बस अंतर इतना एक में अधिकार की मित्रता और एक में प्रेम की भक्ति थी
ना ही कोई जानेगा तुम को रुक्मणि को सबसे प्रिया थी
माधव जैसे तुम भी तो सभ्यसाची(अर्जुन) की सबसे प्रिय सखी थी
तुमने भी अभमिमन्यु को अपना पुत्र माना था
तुमने ही द्रौपदी को दुबारा विश्वास करना सिखाया था
स्वीकार हर दोष मुझे कृष्ण हर लांछन से जाऊंगी
सैत्यभामा माधव सुन जी जाऊंगी
अमावस की रात राम सीता के आगमन की कथा दोहराई जाएगी
कार्तिक मास में मदन मोहन और रसेहवारी के प्रेम की लीलाएं याद आयेंग
दामोदर के प्रिय मास में कृष्ण प्रिया
के पराक्रम की स्मृति में भी छोटी दीवाली बनाई जाएगी।