Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Malvika Dubey

Classics

4.4  

Malvika Dubey

Classics

नारायण प्रिया

नारायण प्रिया

4 mins
342


कृष्ण आत्मिका कई रही

विष्णु की अनेकों 

प्रिय

श्री, भू,नीला,के आलवा

तुलसी ,गंगा, को भी मान मिला ।

 

राधा को प्रेम का मिला उपहार,

रुक्मिणी को अर्धांगिनी अधिकार ।

सीता राम की प्रिय रही,

अस्थभार्य के भाग्य और सम्मान ।


प्रेम का सर्व श्रेष्ठ रूप भक्ति है 

जिसकी मुझको चाह

नाम तुम्हारे मुख धरे

मैं तो चली भक्ति राह


कर्तव्यों से बाध्य 

नियति के चलते 

श्री - हरि रहें परे

पर जो भक्ति रट सर धरे

कण कण नारायण मिले


पद में रहना है

स्वर्ग भी छोड़ना है

 जो स्वीकार हो तुम्हे नारायण 

 मुझे गंगा बनना है

तुम्हारी कृपा तो सर्वश्रेष्ठ है

मुझे पावनी बनाएगी

महादेव की जटाओं में स्थान दिलाएगी

मोक्ष प्रदायनी बनेगी

तुमसे मिलाने के माध्यम बनाएगी

हर की पौड़ी के चरणों पे

गंगा का निवास हो

हर अवतार की कथा में

मेरा भी भाग हो


चाहे लीला का ही बनू पात्र

और क्षण भर कोही रहूं तुम्हारा साथ गोपीनाथ

मुझे चंद्रवाली बनना है

ना प्रियतमा कहलाऊंगी

ना विवाहिता बन पाऊंगी 

ना जग जानेगा 

और ना मन मानेगा

ना अधिकार रहेंगे 

ना स्वीकार करेंगे

बटेगा मेरा प्रेम

सांझा होगा स्नेह भी

पर भक्ति का वरदान रहेगा

सेवा का सौभाग्य मिलेगा

मुख्य ना सही पर महा रास में 

मेरा भी स्थान रहेगा

जब रूप धर अनेक तुम कर्तव्य निभाओगे के

तो एक बार मेरे भी द्वारे आओगे

चंद ही सही कुछ स्मृतियों में मैं भी रहूंगी

जब हर स्थान हो राधा कृष्ण प्रेम का साक्षी

एक स्थान की चंद्रवाली भी भागी 


चाहे समाज दोष धरे

और बिना भूल श्राप मिल

चाहे छले जाने पे भी

अपने स्वामी से विरह मिले

चाहे वो तुल्य उर्वशी सी सूरत बन जाए पत्थर की मूरत

पर जो तुम्हारे चरणों का 

स्पर्श मिला तो मैं अहल्या भी बंजाऊंगी

हर लांछन सिर लूंगी

हर कटु वचन अपने भाग्य

जो मिले मर्यादा पुरषोत्तम से भेट का सौभ्यगा

इंद्र की दृष्टि में मोह दिखा था

गौतम के चक्षु क्रोध

किसी ने वास्तु समझा

किसी ने अधिकार

तर गई हे नारायण जो 

आए तुम मेरे पास

जो देख तुम्हे प्रथम बार क्रोध दुख सब त्याग बैठी

पहली बार अहल्या अपने भाग्य से खुश थी


तुम तो लक्ष्मी पति

तुम्हारी अर्धांगिनी से ही समृद्धि

यश वैभव ऐश्वर्य तुम्हे किसी की अव्यश्यक नहीं

फिर भी तुम में इतनी करुणा जो 

शबरी के घर आए थे

जनार्दन ने शबरी के झूठे बेर खाए थे

पदचिन्हों से तुम्हारे कुटिया में 

हर्ष आया था

भोग लगाने का अवसर मेरे भाग्य आया था

ऐसी हो जब महिमा तुम्हारी क्यों नहीं कोई शबरी बनना चाहे


गोपी ग्वालन बनना मुझे कृष्ण

और झूठा क्रोध दिखाना है

जब नन्हे कदमों से आए मखन चोर

मुझे भी मंद मंद मुस्कान है

चाहे गागरिया फूट जाए

और समाज तंज कसे

कुछ ही क्षण मेरे मन में 

कृष्ण बसे

देखो तो मेरे नयन और अपनी छवि पाओ

सखी अपनी मुझे भी अपनाओ


सुलभा बन सादा जीवन जीना है

और तुमहरी क्षुधा शांत करने का भाग्य चाहिए

ना 56 व्यंजन ना मीठा माखन

बस साग गुड खाने मेरे घर पधारिए


स्वीकार मुझे जो धर्म हेतु चली जाऊं

बस तुम्हारी भक्ति का अवसर पाएं

वो दोष भी मेरे सर जो नारायण को श्राप देने की भूल कर बैठी

तुम जगत ज्ञाता जानते हो ना क्या मेरी स्तिथि थी

पर फिर तुमने अपनी करुणा दिखाई थी

तुलसी को विश्व पावनी की उपाधि

सिर्फ लक्ष्मी ही नही तुलसी बिन भी तुम्हारी अराधना अपूर्ण

श्याम तुलसी राम तुलसी सदा तुमसे ही मेरी पहचान सम्पूर्ण

छोटे से कृत मेरे का तुमने सूत समेत मोल चुकाया

मेरा नाम से वृंदवान बसाया

धन्य हो जो रही राधिका वल्लभ की लीला में काम आई

पुलकित तन मन मेरा जो शालिग्राम से 

शादी रचवाई

स्वीकार मुझे जो आंगन में ही स्थान हो

तुमने ही जगत को सिखाया तुलसी बिना कृष्ण विष्णु का अधूरा मान हो


अब गिरधर आखरी इच्छा

मीरा बना चाहती हो

प्रियतम मान तुम्हे हर विष पीना चाहती हू

कभी छंद कभी दोहे अभी संगीत में 

मेरे भाऊ दिखे 

मन में केवल तुम्हारा स्थान और मुख से केवल तुम्हारा नाम निकले

पाना चाहूं प्रेम रत्न धन जो सर्वअनमोल है

चरणों में दो स्थान गोविंदा व्याकुल मोरा मन है

लोक लाज की ना चिंता कण कण में जो कृष्ण है

माई बापू से क्या रिश्ता जो जीवन में गिरधर है

पत्थर फेक दुनिया , सर्प का भी उपहार दे 

उपहास करे जग कठोर, विरह का भी प्रयत्न करे

पर क्या ताकत इस दुनिया में जो भक्ति से जीत ले

श्वास जो रुकी मेरी क्या भय चरण तुम्हारे ही अंत स्थल हैं


उर्मिला सा भी भाग्य स्वीकार 

वर्षों का विरह भी

क्या काम मेरा जीवन जो समर्पित तुम पे नहीं


भक्ति की भूमि दो नारायण

साथ भले हो दुख भी

कुंती पांचाली बनन भी हर्षित करे

जो साथ खड़े तुम भी


जीवन भर समर्पित मन तन और कृत रहें

मेरी भक्ति से रहे पहचान मेरी

ना अधिकार हो प्रेम पे

ना मित्रता के कर्तव्य रहें

इतनी आशा मेरी बस भक्ति का मुकुट चले।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics