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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - १९४; पांचाल, कौरव और मगध देश के राजाओं का वर्णन

श्रीमद्भागवत - १९४; पांचाल, कौरव और मगध देश के राजाओं का वर्णन

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शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

मित्रयु पुत्र दिवोदास के

च्यवन, सुदास, सहदेव, सोमक

मित्रेयु के चार पुत्र थे।


सोमक के सौ पुत्र थे

जंतु सबसे बड़ा था उनमें

सबसे छोटा पृषन था

पृषन के पुत्र द्रुपद थे।


द्रोपदी नामक पुत्री द्रुपद की

धृष्टद्युमन आदि पुत्र हुए

उसका पुत्र था धृष्टकेतु

सब नरपति पांचाल कहलाये ये।


अजमीढ़ का दूसरा पुत्र ऋक्ष 

ऋक्ष के पुत्र संवरण हुआ

विवाह सूर्य की पुत्री तपती से उसका

उससे फिर कुरु का जन्म हुआ।


कुरुक्षेत्र के स्वामी थे कुरु

कुरु के चार पुत्र हुए

परीक्षित, सुधनवा, जह्नु और निष्धाशव 

ये सब उनके नाम थे।


सुधनवा से  सुहोत्र, च्यवन सुहोत्र से

कृति का जन्म हुआ च्यवन से

उपरिचरवसु हुए कृति से, उनसे

बृहद्रथ आदि सौ पुत्र हुए।


बृहद्रथ, कुशाम्ब, मत्स्य,प्रत्यग्र, चेदपि आदि

चेदिदेश के राजा हुए उनमें

बृहद्रथ का पुत्र कुशाग्र था

कुशाग्र का ऋषभ, सत्यहित उसके।


सत्यहित का पुण्यवान हुआ

पुण्यवान के जहु पुत्र हुए

एक शरीर के दो टुकड़े उत्पन्न हुए

बृहद्रथ की दूसरी पत्नी से।


उन्हें माता ने बाहर फिंकवा दिया

तब जरा नामक राक्षसी ने

उन दोनों को जोड़ दिया था

'जिओ, जिओ' कहकर खेल खेल में।


वही बालक फिर जरासंध हुआ

जरासंध से सहदेव हुए थे

सहदेव का पुत्र सोमापि

सोमपि के श्रुतश्रवा हुए।


कुरु के ज्येष्ठ पुत्र परीक्षित के

कोई भी संतान न हुई

जह्नु का पुत्र था सुरथ 

विदुरथ संतान थी सुरथ की।


विदुरथ का सार्वभौम, जयसेन उसका

जयसेन का राधिक, अयुत राधिक के

अयुत्त का क्रोधन, उसका देवातिथि

देवातिथि के ऋष्य, दिलीप उसके।


दिलीप का पुत्र प्रतीप हुआ

प्रतीप के तीन पुत्र थे

देवापि, शांतनु और बाह्लीक 

ये उन तीनों के नाम थे।


देवापि अपना राज्य छोड़ कर

वन में चले गए थे

इसलिए छोटे भाई उनके

शांतनु ही राजा हुए थे।


पूर्वजन्म में महाभिष थे शांतनु और

इस जन्म में भी वो अपने

हाथ से जिसे छू देते थे

जवान हो जाता था वो बुड्ढे से।


परम शांति मिल जाती थी उसको

उसी करामात से नाम शांतनु हुआ

एक बार उनके राज्य में इंद्र ने

बारह वर्ष तक की न वर्षा।


इससे ब्राह्मणों ने कहा शांतनु से

आपने बड़े भाई दिवापि से

पहले ही विवाह, अग्निहोत्र और

राज्य स्वीकार किया है तुमने।


इसीसे वर्षा नहीं होती राज्य में

क्योंकि तुम परिवेता हो

राष्ट्र, नगर की उन्नति चाहते हो तो

बड़े भाई को राज्य लौटा दो।


इस प्रकार जब कहा ब्राह्मणों ने

शांतनु तब वन में चले गए

अनुरोध किया राज्य स्वीकार करें

बड़े भाई दिवापि से उन्होंने।


परन्तु शांतनु के मंत्री अश्मरात ने

पहले ही कुछ ब्राह्मण भेज दिए

देवापि को वेदमार्ग से विचलित कर दिया

वेद को दूषित करने वाले वचनों से।


उसका फल हुआ कि देवापि

गृहस्थाश्रम की निन्दा करने लगे

वेदानुसार स्वीकारा न उसे तो

राज्य के अधिकार से वंचित हो गए।


तब शांतनु के राज्य में वर्षा हुई

और देवापि इस समय भी

योगसाधना करें, योगियों के स्थान

कलापग्राम में रहते हुए अभी।


कलयुग में जब चन्द्रवंश का

नाश हो जायेगा तब वे

फिर उसकी स्थापना करें

सतयुग के प्रारम्भ में।


शांतनु के भाई बाह्लीक जो

सोमदत्त उनके पुत्र थे

भूरी, भूरिश्रवा, और शल 

सोमदत्त के तीन पुत्र थे।


ब्रह्मचारी भीष्म का जन्म हुआ

शांतनु के द्वारा गंगा से

परमज्ञानी, भगवान् के भक्त

समस्त धर्मों के सिरमौर वे।


अग्रगण्य नेता समस्त वीरों के

औरों की बात तो क्या, उन्होंने

अपने गुरु परशुराम को भी

संतुष्ट कर दिया था युद्ध में।


दाशराज की कन्या के गर्भ से

शांतनु द्वारा दो पुत्र हुए

चित्रांगद और विचित्रवीर्य 

चित्रांगद को मार दिया चित्रांगद गन्धर्व ने।


उसी दाशराज की कन्या सरस्वती से

पराशर जी के द्वारा जन्म हुआ

भगवान् के कलावतार 

मेरे पिता भगवान् व्यास का।


उन्होंने वेदों की रक्षा की

परीक्षित, उन्ही से ही फिर मैंने

भागवतपुराण का अध्ययन किया था

परम गोपनीय, अत्यंत रहस्मय ये।


इसीसे मेरे पिता ने अपने

पैल आदि शिष्यों को इसका

अध्यनन नहीं कराया था और

मुझे ही योग्य अधिकारी समझा।


एक तो मैं उनका पुत्र था

दुसरे शांति आदि गुण भी मुझमें

शन्तनु के पुत्र विचित्रवीर्य का

विवाह हुआ काशिराज की कन्याओं से।


नाम अम्बिका और अम्बालिका

भीष्म बलपूर्वक ले आये थे उन्हें

विचित्रवीर्य राजयक्षय रोग से मर गए

इतने आसक्त वो दोनों पत्नियों में।


माता सत्यवती के कहने से

संतानहीन भाई की पत्नियों से

व्यास जी ने दो पुत्र उत्पन्न किये

धृतराष्ट्र और पांडू थे वे।


उनकी दासी से भी व्यास जी के

पुत्र हुए विदुर नाम के

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी

उसके गर्भ से सौ पुत्र हुए।


सबसे बड़े का नाम दुर्योधन

कन्या का नाम दुः शाला था

सहवास न कर सकें पांडू शापवश

विवाह हुआ कुंती से उनका।


धर्म, वायु, इंद्र ने कुंती से

युधिष्ठर, भीम, अर्जुन उत्पन्न किये

ये तीनों के तीनों ही

बड़े भारी महारथी थे।


पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री से

दोनों अश्वनीकुमारों के द्वारा

दो पुत्रों का जन्म हुआ

नकुल. सहदेव नाम था उनका।


इन पांच पांडवों के द्वारा

द्रोपदी के गर्भ से तुम्हारे

पांच चाचा उत्पन्न हुए थे

प्रतिविन्ध्य पुत्र थे युधिष्ठर के।


भीम के पुत्र श्रुतसेन थे

श्रुतकीर्ति थे पुत्र अर्जुन के

नकुल के शतानीक और

श्रुतकर्मा थे सहदेव के।


युधिष्ठरकी पत्नी परिणी से

देवक पुत्र उत्पन्न हुआ था

भीमसेन के हिडिम्बा से घटोत्कच

और काली से सर्वगत हुआ था।


सहदेव के पर्वतकुमारी विजया से

पुत्र हुआ सुहोत्र नाम का

नकुल के करेणुमती से

नरमित्र नामक पुत्र हुआ।


नागकन्या अलूपी के गर्भ से

अर्जुन द्वारा इरावान हुआ

और मणिपुर नरेश की कन्या से

 बभ्रुवाहन का जन्म हुआ।


नाना का पुत्र बभ्रुवाहन माना गया

बात तय थी क्योंकि पहले से ही

तुम्हारे पिता अभिमन्यु का जन्म हुआ

सुभद्रा नाम की पत्नी से अर्जुन की।


अपनी वीरता से अभिमन्यु ने

सभी अतिरथियों को जीत लिया था 

अभिमन्यु के द्वारा उत्तरा के गर्भ से

ही तुम्हारा जन्म हुआ था।


कुरुवंश का जब नाश हो चुका

अश्व्थामा के ब्रह्मास्त्र से

भगवान ने मृत्यु से बचा लिया तुमको 

तब तुम जल भी चुके थे।


हे परीक्षित तुम्हारे पुत्र जो

तुम्हारे सामने ही बैठे हैं

जन्मेजय, श्रुतसेन, भीमसेन, अग्रसेन

सबके सब बड़े पराक्रमी हैं।


तक्षक के काटने से ही

मृत्यु तुम्हारी हो जाएगी जब

सर्पों का हवन करेगा आग में

क्रोधित होकर ये जन्मेजय तब।


 कावषेणतुर को पुरोहित बनाकर

अश्वमेघ यज्ञ ये करेगा

पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर यज्ञों से

भगवान् की आराधना करेगा।


शतानीक जन्मेजय का पुत्र

यही फिर याग्वल्क्य ऋषि से

शिक्षा प्राप्त करेगा

कर्मकांड और तीनों वेदों में।


कृपाचार्य से विद्या की शिक्षा

आत्मज्ञान का सम्पादन शौनक जी से

और इस तरह ये शतानीक 

परमात्मा को प्राप्त कर ले।


शतानीक का पुत्र सहस्रनीक होगा

 सहस्रनीक का अश्व्मेघज होगा

अश्व्मेघज का असीमकृष्ण और 

नेमिचक्र पुत्र असीमकृष्ण का।


पूरा का पूरा बह जायेगा

गंगा में, हस्तिनापुर जब 

सुख पूर्वक निवास करेगा

नेमिचक्र कोशाम्बिपुरी में तब।


नेमिचक्र का पुत्र चित्ररथ होगा

चित्ररथ का कविरथ,  वृष्टिमान उसका

वृष्टिमान का राजा सुषेण होगा

सुनीथ पुत्र होगा सुषेण का।


सुनीथ का नृचक्षु , उसका सुखीनल 

 सुखीनल का परिपल्व होगा

उसका सुनय, सुनय का मेघावी

कृपंजय पुत्र होगा मेघावी का।


कृपंजय का इर्व , इर्व का निमि

निमि के बृहद्रथ , सुदास होगा उसके

सुदास का पुत्र शतानीक 

दुर्दमन पुत्र होगा शतानीक के।


दुर्दमन का वहीनर, उसका दण्डपाणि 

दण्डपाणि के निमि, क्षेमक होगा उसके

ब्राह्मणों और क्षत्रि दोनों के उत्पत्तिस्थान

सोमवंश का सब वर्णन है ये।


बड़े बड़े देवता और ऋषि

इस वंश का सत्कार हैं करते

राजा क्षेमक के साथ ही

समाप्त होगा ये वंश कलयुग में।


भविष्य में जो राजा होंगे

मगध देश के, अब वो सुनाता

जरासंध के पुत्र सहदेव से

मार्जारी नाम का पुत्र होगा।


मार्जारी से श्रुतस्वा, उससे अयुतायु  

अयुतायु से निरमित्र होगा

निरमित्र से सुनक्षत्र, उससे बृहत्सेन 

 बृहत्सेन से कर्मजित, सृतंजय उसका।


सृतंजय से विप्र, विप्र से शुचि 

शुचि से क्षेम, सुव्रत क्षेम से

 सुव्रत से धर्मसूत्र, उससे शम 

द्युमत्सेन होगा फिर उससे।


द्युमत्सेन का पुत्र सुमति और

उससे जन्म होगा सुबल का

सुबल से सुनीत,उससे सत्यजीत

सत्यजीत से जन्म होगा विश्वजीत का।


विश्वजीत का पुत्र रिपुंजय 

बृहद्रथ वंश के होंगे ये सब राजा

और इनका शासनकाल जो

एक हजार वर्ष के भीतर ही होगा।


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