श्रीमद्भागवत -३२०;; कलियुग के धर्म
श्रीमद्भागवत -३२०;; कलियुग के धर्म


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
घोर कलियुग आता जाएगा ज्यों ज्यों
धर्म, सत्यता, पवित्रता, दया, बल आदि
लोप होता जायेगा त्यों त्यों ।
जिसके पास धन होगा कलियुग में
कुलीन, सदाचारी कहलायेंगे वो
शक्ति होगी तो धर्म, न्याय की व्यवस्था
कर सकेगा अपने अनुकूल वो ।
कुल, शील, योग्यता आदि की परख - विरख
नहीं रहेगी विवाह संबंध में
ये संबंध हो जाएगा बस
युवक - युवती के पारस्परिक रुचि से ।
व्यवहार की निपुणता, सच्चाई और
ईमानदारी नहीं रहेगी लोगों में
उतना ही व्यवहार कुशल माना जाएगा
जो जितना छल कपट करे ।
स्त्री - पुरुष की श्रेष्ठा का आधार
उनका शील, संयम ना होगा
कलियुग में श्रेष्ठता का
आधार रतिकौशल ही रहेगा ।
गुण, स्वभाव से ना होकर ब्राह्मणों की
पहचान यज्ञोपवीत से होगी
ब्रह्मचारी, संन्यासी पहचाने जाएँगे
वस्त्र, दण्ड, कमंडल आदि से ही ।
एक से दूसरे आश्रम में
प्रवेश कोई करना चाहेगा
चिन्ह स्वीकार कर लेना ही
स्वरूप होगा बस यही उनका ।
घूस दे या धन खर्च करे जो
मिल सकेगा न्याय उसी को
उतना ही पंडित माना जाएगा
बोल चाल में जितना चालाक हो ।
असाधुता की, दोषी होने की
पहचान होगी, ग़रीब होना उसका
उतना ही साधु समझा जाएगा
दण्ड, पाखंड जो कर सकेगा जितना ।
एक दूसरे की स्वीकृति ही
विवाह के लिये पर्याप्त होगी
विधि विधान की - संस्कार आदि की
आवश्यकता नहीं समझी जायेगी ।
दूर के तालाब को तीर्थ मानेंगे
तीर्थ आदि जो निकट के
गंगा, गोमती, माता पिता आदि की
वो सब उपेक्षा करेंगे ।
बड़े बड़े बाल, काकुल रखना सिर पर
चिन्ह होगा शारीरिक सौंदर्य का
पेट भर लेना ही जीवन का
सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा ।
बात करेगा जितनी ढिठाई से
सच्चा समझा जाएगा उतना ही
योग्यता - चतुराई का
सबसे बड़ा लक्षण होगा यही ।
कि अपने कुटुम्भ का पालन
मनुष्य कर ले अच्छे से
और धर्म का सेवन तब
किया जाएगा बस यश के लिए ।
दुष्टों का बोलबाला होगा पृथ्वी पर
कोई नियम ना राजा होने का
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र
बनेगा वही जो बली होगा ।
उस समय के राजा भी अत्यन्त
निर्दयी होंगे, क्रूर किसम के
उनमें और लुटेरों में अंतर ना कर सको
लोभी तो इतने होंगे वे ।
पूँजी और पत्नियों तक भी
प्रजा की छीन लेंगे वो राजा
भाग जाएगी पहाड़ों, जंगलों में
उनसे डरकर उनकी ही प्रजा ।
शाक, कंदमूल, मांस आदि खाकर
भूखी प्रजा अपना पेट भरेगी
कभी वर्षा ना होगी, सूखा पड़ेगा
कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी ।
कभी आँधी चले, गर्मी कभी ज़्यादा
कभी आ जाएगी बाढ़ भी
इन उत्पातों और आपस के संघर्ष से
प्रजा अत्यंत पीड़ित रहेगी ।
भूख, प्यास और नाना प्रकार की
चिंताओं से दुखी होंगे लोग सभी
रोगों से छुटकारा ना मिलेगा
परमायु बीस तीस बरस की होगी ।
परीक्षित, कलिकाल के दोषों से
शरीर छोटे होंगे प्राणियों के
शरीर क्षीण हों तेज ना उसमें
और रहेंगे रोगग्रस्त वे ।
वेद मार्ग नष्टप्राय हो जाएँगे
जो बतलाते धर्म वर्ण और आश्रमों का
और धर्म में हो जायेगी
पाखंड की बड़ी प्रधानता ।
शूद्र समान ही हो जाएँगे
लोग तब चारों वर्णों के
कम दूध दिया करेंगी
गोयें और बकरियाँ तब ये ।
वानप्रस्थी और संन्यासी भी
गृहस्थों जैसे व्यौपार करेंगे
अपना संबंधी माना जाएगा बस
जिनसे वैवाहिक संबंध हैं उनके ।
धान और गेहूं आदि के पौधे
होने लगेंगे छोटे छोटे
अधिकांश छोटे और कँटीले वृक्ष ही
रह जाएँगे बस वृक्षों में ।
बादलों में बिजली बहुत चमकेगी
परंतु वर्षा बहुत कम होगी
गृहस्थों के घर अतिथि सत्कार नहीं
वेदध्वनि सुनाई ना देगी ।
जनसंख्या घट जाने के कारण
सूने हो जाएँगे घर सबके
गधों जैसा दुःसह स्वभाव होगा मनुष्यों का कलियुग का अंत होते होते ।
गृहस्थी का भार ढोने वाले
और विषयी सब हो जाएँगे
धर्म की रक्षा करने के लिए तब
भगवान स्वयं अवतार ग्रहण करें ।
परीक्षित,
सर्वशक्तिमान श्री विष्णु
शिक्षक - सदगुरु चराचर जगत के
अवतार ग्रहण करें, सत्पुरुषों को
छुड़ाने के लिए जन्म - मृत्यु के चक्र से ।
उन दिनों शंभल ग्राम में एक
विष्णुयश नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे
हृदय बड़ा उदार होगा उनका
भगवत्भक्ति में पूर्ण होंगे वे ।
कलिकभगवान उस कलियुग में
उन्हीं के घर अवतार ग्रहण करें
देवदत्त नाम के घोड़े पर स्वार हो
दुष्टों का संहार करेंगे ।
पृथ्वीपर सर्वत्र विचरण कर
राजा के वेष में रहने वाले
कोटि कोटि डाकुओं का वो
संहार करेंगे अपनी तलवार से ।
संहार हो जाएगा जब डाकुओं का
पवित्र होगा हृदय प्रजा का
भगवान कलिक का श्री विग्रह तब
उस प्रजा को प्राप्त होगा ।
प्रजा के पवित्र हृदय में
विराज होंगे तब वासुदेव जी
हृष्ट पुष्ट होने लगेंगी
तब उन सबकी सन्तानें भी ।
भगवान कलिक अवतार लेंगे जब
प्रारंभ हो जायेगा सतयुग का
सत्वगुण से युक्त हो जाएगी
प्रजा की सन्तान परम्परा ।
चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति
पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में
एक ही साथ प्रवेश करते हैं
एक ही राशि में आते हैं जब वे ।
सतयुग का प्रारम्भ तब होता
भगवान कलिक के जन्म पर होगा ये
जितने राजा चंद्र या सूर्य वंश के
सब वर्णन कर दिया मैंने ।
तुम्हारे जन्म से लेकर और
अभिषेक तक राजा नंद के
एक हज़ार एक सौ पंद्रह
वर्ष तब तक बीत जाएँगे ।
सप्तऋषियों का उदय जब होता
दो ही तारे दिखाई हैं पड़ते
उनके बीच में दक्षिणोत्तर रेखा पर
सम्भाग के नक्षत्रों में से ।
एक नक्षत्र दिखाई पड़ता है
और साथ उस नक्षत्र के
सौ वर्ष तक रहते हैं
सप्तऋषिगन मनुष्यों की गणना से ।
तुम्हारे जन्म के समय और इस समय
वो स्थित हैं मधा नक्षत्र पर
कृष्ण जब परमधाम चले गये
कलियुग ने प्रवेश किया पृथ्वी पर ।
उसी के कारण मनुष्यों की मति गति
पाप की और ढुलक गई
चरणकमलों से पृथ्वी का स्पर्श
जब तक करते रहे कृष्ण लक्ष्मीपति ।
तब तक पैर जमा सका ना
कलियुग इस पृथ्वी पर अपने
कलियुग के प्रारम्भ होते ही
जिस समय सप्तऋषि मधा नक्षत्र में विचरते ।
देवताओं की वर्ष गणना से मानें तो
कलियुग की आयु बारह सौ वर्ष की
चार लाख बत्तीस हज़ार वर्ष है
गणना के अनुसार मनुष्यों की ।
जब सप्तऋषि मधा से चलकर
जा चुके होंगे पूर्वाषाढा नक्षत्र में
उस समय इस पृथ्वी पर
राजा नन्द राज्य कर रहे होंगे ।
वृद्धि शुरू होगी कलियुग की तभी से
और जब देवताओं की वर्ष गणना के
एक हज़ार वर्ष बीत चुके होंगे
तब कलियुग के अंतिम दिनों में ।
फिर से कृपा से कलिक भगवान की
सात्विकता का संचार होगा मनुष्यों में
वास्तविक स्वरूप को जान सकेंगे अपने
सत्वयुग का प्रारंभ होगा तभी से ।
परीक्षित, मनुवंश का वर्णन किया मैंने
और जैसे मनुवंश की गणना होती
वैसे ही समझो प्रत्येक युग में
गणना हो ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र वर्णों की ।
जिन पुरुष, महात्माओं का वर्णन किया है
पृथ्वी पर अब वो नहीं
उनकी कीर्ति ही पृथ्वी पर
अब लोगों को सुनने को मिलेगी ।
भीष्मपितामह के पिता राजा शान्तनु के
भाई देवापि और इक्ष्वाकुवंशी मरू ने
इस समय क्लापग्राम में स्थित हैं
बहुत बड़े योगबल से युक्त वे ।
कलिक भगवान की आज्ञा से वे
कलियुग के अंत में फिर यहाँ आयेंगे
और पहले की ही भाँति
वर्णाश्रम धर्म का विस्तार करेंगे ।
सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग
चार युग हैं और ये सभी
पृथ्वी पर अपना प्रभाव दिखाते
पूर्वोक्त कर्मों के अनुसार ही ।
पृथ्वी को मेरी मेरी कढ़ते हुए
सभी राजा मर गये अंत में
ना किसी कभी प्राणी को सताता है
शरीर के या इसके संबंधियों के लिए ।
वह ना यो अपना स्वार्थ जानता
ना परमार्थ ही जाने वो
नर्क का ही द्वार है
क्योंकि प्राणियों का सताना तो ।
बड़े उत्साह और बल पौरुष से
जो नरपति उपभोग करें पृथ्वी का
उन सबको काल ने अपने
विकराल काल से धर दबोचा ।