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Ajay Singla

Classics

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श्रीमद्भागवत -३१८; श्री भगवान का स्वधामगमन

श्रीमद्भागवत -३१८; श्री भगवान का स्वधामगमन

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श्रीमद्भागवत ३१८; श्रीभगवान का स्वधामगमन 


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित 

चले जाने पर दारुक के 

शिव- पार्वती, इंद्रादि लोकपाल 

मरीच आदि प्रजापति बड़े बड़े ।


ऋषि मुनि, पितर, गंधर्व,नाग, यक्ष 

किन्नर, अप्सराएँ, गरुड़लोक के पक्षी 

वहाँ आए भगवान कृष्ण के 

परमधाम प्रस्थान को देखने के लिए ।


सभी भगवान श्री कृष्ण के 

जन्म, लीलाओं का गान कर रहे 

भर गया था तब वहाँ 

सारा आकाश उनके विमानों से ।


आत्मा को स्वरूप में स्थित कर कृष्ण ने 

नेत्र बंद कर लिये अपने 

सशरीर चले गए परम्धाम को 

पुष्प बरसने लगे आकाश में ।


भगवान श्री कृष्ण के पीछे पीछे 

सत्य, धर्म, धैर्य, कीर्ति 

इस लोक से चले गये 

और श्री देवी भी चली गयीं ।


गति भगवान श्री कृष्ण की 

परे है मन और वाणी से 

तभी तो ब्राह्मदि भी उन्हें देख ना सके 

जब वो धाम में प्रवेश करने लगे ।


इस घटना से उन्हें बड़ा विस्मय हुआ 

और परम्योगमयी गति देखकर ये 

ब्रह्म, शंकरादि प्रसंशा करते हुए उनकी 

अपने अपने लोक चले गये ।


परीक्षित, भगवान का मनुष्यों के समान

जन्म लेना और लीला करना 

और संवरण कर लेना उसे 

अभिनयमात्र है उनकी माया का ।


वे स्वयं ही इस जगत की 

सृष्टि करके इसमें प्रवेश करें 

विहार करते हैं और संहार कर 

अपने स्वरूप में स्थित हो जाते ।


सांदीपनि गुरु का पुत्र 

यमपुरी चला गया था जो 

मनुष्य शरीर के साथ ही 

लोटा लाए श्री कृष्ण उसको ।


 ब्रह्मास्त्र से जल चुका था 

तुम्हारा शरीर, परंतु कृष्ण ने 

तुमको भी जीवित कर दिया 

कृपा की तुमपर

उन्होंने ।


और तो और शंकर जी को भी 

युद्ध में जीत लिया उन्होंने 

व्याध को सदेह स्वर्ग भेज दिया 

शरीर पर प्रहार उनके किया जिसने ।


इधर दारुक भगवान कृष्ण के 

विरह में व्याकुल द्वारका आ गया 

उग्रसेन के चरणों में पड़कर

यदुवंशियों को सब विवरण सुनाया ।


सब लोग दुखी हुए ये सुनकर

कुछ मूर्छित हो गए शोक में 

देवकी, रोहिणी, वासुदेव भी 

बेहोश हो गए जब सब सुना ये ।


   

भगवद्विरह में व्याकुल होकर 

प्राण छोड़ दिये उन्होंने अपने 

स्त्रियाँ अपने पतियों के साथ ही 

प्रवेश कर गयीं अग्नियों में ।


अर्जुन अपने सखा भगवान कृष्ण के 

विरह में पहले तो व्याकुल हो गए

फिर गीतोक्त उपदेशों को स्मरण कर 

अपने आपको सम्भाला उन्होंने ।


यदुवंश के मृतकों में जिनका 

कोई पिण्ड देने वाला ना था 

अर्जुन ने विधिपूर्वक

उनका पिण्डदान करवाया ।


भगवान के ना रहने पर 

बस एक निवासस्थान छोड़ भगवान का 

समुंदर ने एक क्षण में ही 

सारी द्वारका को डुबो दिया ।


सदा सर्वदा निवास हैं करते 

भगवान कृष्ण आज भी वहाँ 

  सर्वमंगलों को भी मंगल 

वह स्थान है बनाने वाला ।


अर्जुन इंद्रप्रस्थ ले आये

बूढ़े, बच्चे, बची खुची स्त्रियों को 

राज्याभिषेक किया वज्र का 

अनिरुद्ध के पुत्र थे जो ।


तुम्हारे दादा युधिष्ठिर आदि को 

अर्जुन से जब ये मालूम पड़ा 

कि यदुवंशियों का संहार हो गया 

तब हिमालय की उन्होंने की यात्रा ।


परीक्षित यह लीला का कीर्तन 

मुक्त करे समस्त पापों से 

प्रभु के चरणों में परमगति मिले 

लीलाओं का संकीर्तन जो करे ।


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