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Vijay Kumar parashar "साखी"

Classics

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Classics

परिवार बिना

परिवार बिना

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पेड़ से टूटकर पत्ते वजूद खो देते हैं

अपनों से बिछड़कर लोग रो देते है


परिवार से हटने वाले, अक्सर जग में,

खुद अपने नसीब-दरवाजे तोड़ देते हैं


जब तलक तेरा ये दिल जिंदा होगा

तब तलक तेरा ये जिस्म जिंदा होगा


अपने परिवार से दूरजाने वाले लोग,

अक्सर अपनी सांसे खुद तोड़ देते हैं।


पेड़ से टूटकर पत्ते वजूद खो देते हैं

अपनों से बिछड़कर लोग रो देते हैं।


अपना घर तो अपना घर ही होता है,

घर से दूर होनेवाले खंडहर हो लेते हैं।


एक-एक ईंट से ही परिवार बनता है

एक ईंट के टूटने से सब ही रो देते हैं।


तेरे ख़्वाब शीशे से है जग में साखी,

बिना घर के ख़्वाब पत्थर हो लेते हैं।


पेड़ से टूटकर पत्ते वजूद खो देते हैं

अपनों से बिछडकर लोग रो देते हैं।


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