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Vivek Agarwal

Classics

5.0  

Vivek Agarwal

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रास लीला - रूपमाला छंद

रास लीला - रूपमाला छंद

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प्रथम सर्ग में राधा-कृष्ण की दिव्य, प्रेममयी रासलीला का वर्णन है और द्वितीय सर्ग में इस समस्त ब्रह्माण्ड को प्रभु की रासलीला और सभी प्राणियों को कृष्ण से विरक्त गोप-गोपियों के रूप में परिकल्पित करते हुए पुनः प्रभु मिलन का मार्गदर्शन है।


प्रथम सर्ग

रास लीला की कथा को, मैं सुनाता आज।

ध्यान से सुन लो मनोहर, गूढ़ है ये राज॥

पुण्य वृन्दावन हमारा, प्रेम पावन धाम।

रात को निधि-वन पधारें, रोज श्यामा श्याम॥

दिव्य दर्शन दें प्रभु हर, पूर्णिमा की रात।

मान लो मेरा कहा ये, सत्य है यह बात॥

पेड़-पौधे पुष्प-पत्ते, झूमते मनमीत। 

मोर कोयल मिल सुनाते, प्रेम रस के गीत॥

जीव-जंतु भी करे हैँ, हर्ष से गुण-गान।

तितलियाँ मदहोश होतीं, प्रेम रस कर पान॥

मुस्कुराता चाँद नभ में, चाँदनी हर ओर।

हैं सुगन्धित सब दिशायें, हर्ष का ना छोर॥

प्रेयसी राधा पुकारे, प्रेम से जब नाम।

कृष्ण को आना पड़ेगा, छोड़ सारे काम॥

कृष्ण-राधा का करें मिल, सब सखी श्रृंगार।

ज्ञान किसको चाहिए जब, प्यार ही आधार॥

पीत वस्त्रों में सुशोभित, मोर पंखी माथ।

हैं कमल से नेत्र सुन्दर, बाँसुरी है हाथ॥

सुंदरी राधा सजी हैं, लाल नीले वस्त्र।

हैं कटीले नैन उनके, शक्तिशाली शस्त्र॥

रूप अद्भुत है दमकता, स्वर्ण सा हर अंग।

रास लीला सुख उठायें, श्याम श्यामा संग॥

गीत मंगल गा रहे सब, गोप गोपी साथ।

झूम कर नाचें सभी ले, हाथ ले कर हाथ॥

पुण्य लाखों जो किये थे, तो मिली ये शाम।

गोपिका राधा लगे है, गोप में हैं श्याम॥

हैं अचंभित देवता सब, देख अध्भुत खेल।

हैं हजारों श्याम गोपी, दिव्य है यह मेल॥

रातरानी है महकती, मस्त मादक गंध।

जन्म-जन्मों तक रहेगा, आज का गठ-बंध॥

बाजती पायल छमाछम, बाजते करताल।

नृत्य करती गोपियाँ सब, नाचते गोपाल॥

रख अधर वंशी बजायी, छेड़ मीठी तान।

लोक लज्जा छोड़ राधा, नृत्य करती गान॥

रूठती राधा मनाते, कृष्ण बारम्बार।

खिलखिलाती गोपियाँ भी, देख ये मनुहार॥

हार कर भी जीत जायें, प्रेम का यह खेल।

तन भले दो एक मन पर, है अनूठा मेल॥

रात बीती भोर आयी, जागते गोपाल। 

रात भर क्रीड़ा चली है, नैन लगते लाल॥

रास लीला की कहानी, रूपमाला छंद।

सुन रहे सब मुग्ध-मोहित, छा गया आनंद॥


द्वितीय सर्ग

गौर से सोचो नहीं ये, रास लीला मात्र। 

रास है संसार सारा, हम सभी हैं पात्र॥

बन वियोगी राह देखें, कब मिलन का योग।

भूख दर्शन की हृदय में, प्रेम का यह रोग॥

हम अभी बिछड़े हुए हैं, दूर हमसे श्याम।

बात मेरी मान लो तुम, बस करो यह काम॥

है बड़ा भगवान से भी, दिव्य उनका नाम।

नाम जप लो नित्य उनका, आ मिलेंगे श्याम॥

मोह-माया जग है सारा, मात्र सच्चा नाम।

नाम उसका जो पुकारा, सिद्ध सारे काम॥

राम कह लो या कहो तुम, कृष्ण उसका नाम।

तुम मधूसूदन पुकारो, या कहो घनश्याम॥

देवकी नंदन वही तो, है यशोदा लाल।

नाम माखनचोर भी है, और है गोपाल॥

कंस हन्ता भी वही है, नंदलाला श्याम।

वासुदेवा कृष्ण पावन, दिव्य सारे नाम॥

नाम गज ने जब पुकारा, आ गए भगवान।

नाम मन में तू बसा ले, कर हरी का ध्यान॥

कल्पना से मात्र जिसने, है रचा संसार।

है जगत स्वामी वही है, सर्व पालनहार॥

मंझधारा में पड़े हम, वो कराता पार।

बस वही सर्वोच्च शाश्वत, सत्य का आधार॥

याद गीता पाठ हो तो, कर्म पर दो ध्यान।

सुख मिले या दुख मिले है, जिंदगी आसान॥

कर समर्पित बस उसी को, हम करें हर कर्म।

ना निराशा दम्भ हो तब, ज्ञान गीता मर्म॥

हम रहें निष्काम तो फिर, द्वेष ना अनुराग।

वाहवाही ना कमायी, ना कमाया दाग॥

जब सभी उसका जगत में, गर्व की क्या बात।

हर समय बस ध्यान उसका, भोर हो या रात॥

मन-वचन-धन-तन हमारा, सब समर्पित आज।

भक्तवत्सल आप रखना, अब हमारी लाज॥

मार्गदर्शन आपका बस, हो हमारे साथ।

जब कभी जाएँ भटक तो, थाम लेना हाथ॥

मन बसे बांके बिहारी, श्वास में बस श्याम।

और कुछ ना चाहिए अब, मिल गया विश्राम॥

जानता कुछ भी नहीं मैं, मैं नहीं विद्वान।

हूँ पड़ा चरणों में आ के, कर कृपा भगवान॥

है भरोसा श्याम पर अब, है मिलन की आस।

मन अगर निश्छल हमारा, कृष्ण करते वास॥

प्रेम की ही भूख उसको, प्रेम की ही प्यास।

प्रेम की अभिव्यक्ति है, दिव्य क्रीड़ा रास॥



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