ग़ज़ल - महाशिवरात्रि
ग़ज़ल - महाशिवरात्रि
अलौकिक पर्व है आया, ख़ुशी हर ओर छाई है।
महादेवी सदाशिव के, मिलन की रात आई है॥
धवल तन नील ग्रीवा में, भुजंगों की पड़ी माला।
सुसज्जित सोम मस्तक पर, जटा गंगा समाई है॥
सवारी बैल नंदी की, चढ़ी बारात भूतों की।
वहीँ गन्धर्व यक्षों ने, मधुर वीणा बजाई है॥
पुरोहित आज ब्रह्मा हैं, बड़े भ्राता हैं नारायण।
हिमावन तात माँ मैना, को जोड़ी खूब भाई है॥
अटारी चढ़ निहारे हैं, भवानी चंद्रशेखर को।
मिली आँखों से जब आँखें, वधू कैसी लजाई है॥
अनूठा आज मंगल है, महाशिवरात्रि उत्सव का।
सकल संसार आनंदित, बधाई है बधाई है॥
जगत कल्याण करने को, सदा तत्पर मेरे भोले।
हलाहल विष पिया हँस कर, धरा सारी बचाई है॥
नमन श्रद्धा सहित मेरा, करो स्वीकार चरणों में।
समर्पित शक्ति-औ-शिव को, ग़ज़ल ‘अवि’ ने बनाई है॥

