ग़ज़ल - ये जीना तो नहीं
ग़ज़ल - ये जीना तो नहीं
ग़मों की रेत से कंकड़ ख़ुशी के छान लेते हैं।
ये जीना तो नहीं लेकिन चलो हम मान लेते हैं।
नहीं शिकवा है दुनिया से गिला मुझको है अपनों से,
ज़रा से प्यार के बदले वो पूरी जान लेते हैं।
ज़रूरत है नहीं हमको तेरी नज़र-ए-इनायत की,
मोहब्बत में लुटा कर जां नहीं अहसान लेते हैं।
मिला कर आँख से आँखें ज़रा दो बात करते हैं,
नज़र को देख नीयत हम बुरी पहचान लेते हैं।
अगर सपने हैं आँखों में जला लो आग सीने में,
बड़ी कीमत यहाँ छोटे से भी अरमान लेते हैं।
बहुत ज़िद्दी ये फ़ितरत है बड़े पक्के इरादे हैं,
नहीं सुनते किसी की फिर अगर हम ठान लेते हैं।
अगर हिम्मत जिगर में है डगर सच की ही तुम चलना,
जो डरते हैं वही राहें यहाँ आसान लेते हैं।