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Bhavna Thaker

Tragedy

4.5  

Bhavna Thaker

Tragedy

रुक जा ज़िंदगी

रुक जा ज़िंदगी

1 min
426


बला की खूबसूरत थी तू कभी 

ए ज़िंदगी क्यूँ अपना

घिनौना पहलू दिखा रही है

किधर को भाग रही है रुक ना 

श्मशान का रुख़ मत कर 


हमें अपनों की कमी अखर रही है

माना की नाशवंत है सब यहाँ 

तू तो लकीरों से उखाड़ कर 

कच्ची उम्र भी ले जा रही है 

साँसों की जुम्बिश पर अटके है हम


क्यूँ तू हवाओं को हमारा 

दुश्मन बना रही है

उम्मीद बिखर गई सपने टूट रहे 

बच्चों के सर से साये उठ रहे 

चुड़ियों की झनकार क्यूँ 


तू कलाइयों से छीन रही है

मूड़ जा वापस उस वक्त की छाँव में 

खेलती थी कभी खुशियाँ हर आँगन 

उस लम्हें को ले आ ना कहीं से 

तलाशते हंसी अब लब भी हार गए हैं


किससे मांगे हम धूप का टुकड़ा 

हरसू तमस की रंगोली सजी है

इबादत में हमारी असर नहीं रही 

या ईश्वर ने आँखें बंद कर रखी है।


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