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S N Sharma

Tragedy

5  

S N Sharma

Tragedy

मैं नदी हूं

मैं नदी हूं

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नदी जब भी नदी से मिलती है ये कहती है।

हो गया पूरा मिलन धार एक हो कर बहती है

यह संगम है दिलों का धड़कनें हमने बदल ली

रंग मिल एक हो गए गहनता धारा में भर ली

रास्ता अपना बनाने घिस रही चट्टान धारा।

कट गई चट्टान गहरी बन गया सुंदर किनारा

बड़े पत्थर रेत हो कर किनारों पर बिछ गए।

सभ्यताओं के शहर मेरे तटों पर सज गए।

देती जीवन मैं धरा को बेग से आगे बढ़ी हूं।

प्यास सबकी बुझाती शोभा खेतों की बनी हूं।

भेंट सबको दे चली सींच कर जल अपना सारा।

हो गई क्रश्काय काया घट गई जीवन की धारा

फैक्ट्री और नालियों की गंदगी मुझ में मिलाकर

बदले में लोगों ने दी जहरीली बदबू मुझ में भर।

नदी से नाली बनाकर कर लिया मुझे किनारा।

छीन के पाबनता मेरी गंदी कर दी मेरी धारा।



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