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Dayasagar Dharua

Tragedy

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Dayasagar Dharua

Tragedy

जिस परेशानी से हूँ मैं परेशान

जिस परेशानी से हूँ मैं परेशान

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गहरी नींदों के जो लाखों-हजारों सपनें हैं

चुन चुन कर हर एक को तराशा है मैंने,

छान लिया उन छोटे से भी छोटे यादों को भी

नायाब पलों को समेटे रखे थे जिन्होंने।


था जिञासा लिए मरोड़ा खुद ही खुद की नसें

पर न सका सिलसिलों की शुरुआत को जानने,

हर कोशिश के बाद भी नाकाम ही ठहरा

अब जाउँ वही सवालें फिर किससे दुहराने।


जिस परेशानी से हूँ मैं परेशान,

वो होता हावी बस मुझ अकेले पर ही क्यों जाने।


पलकों के पिछे आँखों के निचे जो है

कुछ तरल और कुछ नमकीन सा,

मतलबी दुनिया उसे सिर्फ आँसू कहती

पर है मेरे लिए वरदानी अमृत जैसा।


कुछ टपकें उसके जो टपक जाते

बदल जाता ग़म नामी वस्तु की हर परिभाषा,

उसकी नमकीनी रसों मे कुछ इलाज सा था

अब उसके एक बूंद गिरने को रह जाउँ तरसा।


जिस परेशानी से हूँ मैं परेशान,

उसे कुछपल भुलाने को ठहरुँ आँसू का प्यासा।


हर वो हाल के हल होंगे

मेरे इस हालत का क्यों नहीं,

हर तोड़ का भी जोड़ होगा

पर मुझ बेजोड़ का तोड़ मैं खुद ही।


जी करे की नई मोड़ दूँ अपनी मोड़ को

और चलता जाऊँ ले जाए जहीं।

फिर लगता गलत ये सहसा साहस

शायद चुपचाप सहना ही हो सही।


जिस परेशानी से हूँ मैं परेशान,

क्या पता वो मिले इन्हीं वेदनाओं मे छिपी कहीं।


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