STORYMIRROR

Dayasagar Dharua

Romance

3  

Dayasagar Dharua

Romance

वसंत की भोली

वसंत की भोली

1 min
272

तुम बेहद भोली हो,

वसंत के आते ही

समझने को नाराज रहती हो


इसीलिए,

मैने पिछले वसंतों से वादा लिया था

कि आने वाले वसंतों मे

अपनी फूलों को मुुझ पे गिरने न दे

अपनी हवाओं को मुझे चूमने न दे

तुम रुठ जाती हो

सपनों के उलझन मे

ख्यावों की दल दल मे

मुझ तनहा छोड़,

निराशाजनक समंदर मे कूद जाती हो


तुम बेहद भोली हो,

वसंत के आते ही

तुम मुझसे चिढ़ने लग जाती हो


इसीलिए,

मैने खुद से ही वादा ले लिया था

के आने वाले दिनों मे

तारीफ़ के पूल न बांधा करूँ वसंतों का

लाल पिले फूलों और उन पे भँवरों का

तुम ईर्ष्या करने लगती हो

वसंत से बैर करने की चाह मे

उसके के प्रेम समाविष्ट माह मे

घृणा की राह चुन,

नफ़रत की आग मे जलने लग जाती हो


तुम बेहद भोली हो,

वसंत के आते ही

गुस्सा नाक की नोक पे रखे घूमती हो


इसीलिए,

मैने तुम से भी वादा लिया था

यूँ सटकर मेरा हाथ गर थामती हो

तो बहक मत जाना

भड़क कर आग बबूला न होना

न कहना के तुम्हारे हाथ भरे भरे क्यों हैं

पगली हर साल भूल जाती हो

के ये जिम्मेदारियाँ हैं

जिसे तुम खुद हर वसंतों मे

मेरी कंधों से उतार कर लकीरों पर लिखती हो


पगली !

सचमुच,

तुम बेहद भोली हो ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance