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Dayasagar Dharua

Tragedy

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Dayasagar Dharua

Tragedy

तू और मैं - ६

तू और मैं - ६

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मैं किसी आषाढ़ में

एक उड़ता दीमक जैसा,


तू मेरी प्राणों से भी प्रिय

अनमोल पंख जैसी,


तू हर आषाढ़ के

बौछारों के हल्की मार से

टूट कर मुझसे अलग हो जाती

उसकी धारों मे बह जाती,


मैं वापस जमीन पे गिर जाता

रेंगता रेंगता तुझे ढूँढता

तेरे बिछोह में

आखरी साँसें गिनता,


तेरा वजूद ढूँढते ढूँढते

मैं गुमराह बन जाता

फिर तुझ तक पहुँचने से पहले

किसी बिच्छू या मेढक के

लपेटे में चला जाता,


एक विरही प्रेमी के जैसा

अपनी मरण को स्वीकारता।


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