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Nitu Mathur

Tragedy

5  

Nitu Mathur

Tragedy

मैली हवा

मैली हवा

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वो सुबह कुछ अलग सी थी

कुछ धुआं रेत बारीक सी थी

कैसी सुबह की मैली हवा है

आंखो में जलन चुभन सी थी


ये मैली, मटमैली सी हवा 

दम घोटता, जहरीला धुआँ 

बदहवास हालात में जीने को

पल पल सांसे लेने को मजबूर 

यहाँ हर इंसान.. 


लेकिन इस हालात का भी 

अकेला बस वही जिम्मेदार 

हरी भरी जमीन को रौंदता

धरा के हृदय में शूल सा चलाता 

लोभवश प्रकृति का विनाश करता,


परिणाम जानते हुए भी 

ये सिलसिला नहीं थम रहा 

धीरे-धीरे यहां रोज एक 

इमारतों का नया शहर बन रहा


आकाश पहने आसमानी आवरण 

संतुलन खोता देश का पर्यावरण, 

ठोस कदम उठाने की बहुत जरूरत है 

आने वाली पीढ़ी का कुछ और नहीं तो 

स्वच्छ साँसों पर तो हक है...


बड़े वादे कसमें तभी पूरे होंगें

जब खुली धुली सांस ले पायेंगे 

क्या कभी गीली होके हवा धुलेगी यहां

क्या धरा हरी और नीला होगा आसमां?

   

          


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