जीवंतता
जीवंतता
मनभीतर हलचल तो कंठ ज़ोर से गरज
कारी घटा घनघोर घुटे तो अब बरस
दामिनी चमके बदरा बीच से तड़क
नूपुर लड़ टूट बिखरे झांझर छनक
वर्षा नीर से नैन धुले खिले खुले जागे
धुंध हटी सब साफ़ भूमि उजले वरण
ऐसे ही भाव बहे दरिया से ढूँढे नव पथ
सुखद अंत प्रतीक्षा का तप हुआ पूरण
ना मूरत ना सूरत मेरी ना कोई पहचान
ना जैसे वन गहन में जीव जान अंजान
किंतु मैं भीतर सबके जैसे मन बसे जान
फूल जीव मानस सबका मुझको ज्ञान
ना ईश्वर भगवान मैं ना कोई जादूगर
भोला सा जीव हूँ जो धड़के सबके अंदर
देख रहा हूँ घुटते सबको रोकते आँसू
क्या वर्षा का का कर रहे थे इंतज़ार
ऋतु तो हर वर्ष आती है, अपना धर्म निभाती है
आसमानी रंगमंच पर कला अभिनय दिखाती है
हैरान सुखद हर्षित कई भूमिका निभाती है
मनोरम सहजता से ये हर भाव बहा ले जाती है
हर दुविधा संकोच हटा अब धुली सी बस्ती है
मोड़ सुलभ राह सुलझ तरकीब भी सस्ती है
उत्तम विशेष गुण देखो कितनी इसमें क्षमता है
फूल पत्ता जीव खिले इस वर्षा में जीवंतता है।
