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Nitu Mathur

Classics Inspirational

4  

Nitu Mathur

Classics Inspirational

नव उद्देश्य

नव उद्देश्य

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जब सोच हो सरस तो वाणी बहे मधुर 

ध्वनि उठे जब मधम सी शीतल हों अधर 

शब्द अलंकृत वर्णित जब एक हों सुर ताल 

पुलकित हर्ष स्वरों से तब गूंजे धरा आकाश 


बोली हो ऐसी कि मन में मिसरी घोले 

स्नेह बरसे मुख से तो जग अपना हो ले 

संवाद सच्चे होने से समझ सरल बनती है 

विचार सम हो या भिन्न एक सोच नई बनती है 


वाद विवाद की सीमा तय हो 

कोई रोष ना पनपे एक दूजे में 

पक्ष विपक्ष का समझ मायना 

सही निष्कर्ष उभरे वार्तालाप में 


बोलने से अधिक सुनने में उतमता है 

शांत आचरण से बढ़ती सहनशीलता है 

थोड़ा आराम विराम बोली का आवश्यक है 

मौन मुख से कभी आँखे कसती कटाक्ष हैं 


प्रीत की वाणी हरजन को भावे 

चाहे पहचान अलग हो वो अपना बन जावे 

यही विनती यही प्रार्थना यही है विश्वास 

नव वर्ष में नव उद्देश्य का सबको हो आभास 


~नीतू माथुर 


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