धुआँ
धुआँ
है सर्द घना काला गहरा छाया धुआँ
कहीं हवा मैली कहीं हादसों का धुआँ
ज़ार ज़ार इस हुई बस्ती में हर तरफ़
चीख पुकार ख़ौफ़ दहशत का धुआँ
बैठी इंसानियत राख की ढेरी पर
अब मानो हल्की हो गई है
जहां मिलकर खुशियाँ मनाते थे हम
वो गलियाँ अब सूनी हो गई हैं
मासूम ज़िंदगी अब डरने लगी है
मजबूर हो घुटी साँसे ले रही है
ये नज़ारा किसी को ना नसीब हो
साँसे खुल के ख़ुशी से लें ज़रा
अभय ये आवाम हो
अब कुछ ऐसे हालत हों
