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Nitu Mathur

Romance Classics Inspirational

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Nitu Mathur

Romance Classics Inspirational

नई नादानियाँ

नई नादानियाँ

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जाने कितनी नादानियाँ की हैं 

कितनी बाक़ी रह गईं 

वो एक धड़कन जो उमंग भरी 

जाने कितनी साँसों तले दब गई 


बड़ी तेज़ थी रफ़्तार ज़िंदगी की 

हम काबू ना कर पाये 

जिधर चला वक्त का पहिया 

पीछे पीछे वही रस्ता पकड़ पाये 


कहीं ख़लिश रहती तो थी 

मगर वो भी धुंधला गई 

मन की खिड़की खोली तो 

उमर कबकी वहाँ से गुज़र गई 


चेहरे पर मुस्कान तो है मगर 

खुल के हँसना भूल गए 

दर्पण याद दिलाता है वो घड़ी 

हम वो बात अनसुना कर गए 


मगर अब नव जीवन नव पड़ाव 

नव संध्या नव प्रभात बदलाव 


नई नादानियाँ करने लगी हूँ 

ख़ुद से ढेरों बातें करने लगी हूँ 

गीतों कहानियों में रच बस के 

मौज से मन बहलाने लगी हूँ 


चंचल तरंग मलंग फिरने लगी हूँ 

धवल नदिया की लहरों संग बहने लगी हूँ 

केशों से नीर झरे मानो धुले बदरा हों 

अधरों लाली नैनों में कज़रा सजाने लगी हूँ 

मैं नई नादानियाँ बाँटने लगी हूँ ….।


~नीतू माथुर 



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