तू वो शख्स है
तू वो शख्स है
तू वो शख्स है
जिसे मैं खोना नहीं चाहती
पर तेरी बाहों में वक्त
बिताने का एक भी
मौका गँवाना नहीं चाहती
तू मुझसे दूर रहे
या पास रहे कोई बात नहीं
तेरे खयालों में मैं रहूँ
यह विश्वास पाना चाहती हूँ
तू इश्क है मेरा
तू ही चाहत है मेरी
तेरी इसी चाहत पर
गरूर है मुझे इतना की
तुम्हें खोना नहीं चाहती
तुम्हें अपनी गज़लों में
इश्क का सरताज मान
लफ़्ज़ों में पिरोते हैं
मेरे दिल के शहंशाह हो तुम
तुम्हें दर्द नहीं देना चाहती
अमानत हो मेरी
चाँद की तरह
बेशक मैं चाँदनी हूँ तुम्हारी
पर मैं बादलों की ओट में
सिमट कर तुम से
दूर नहीं होना चाहती
इश्क इबादत है मेरी
इश्क ही अरदास है मेरी
सदा जवाँ रहे इश्क हमारा
रंग जो मैंने भरने की थी
कभी कुछ गुस्ताखियाँ तेरे साथ
उन्हे बेरंग करना नहीं चाहती
हद से ज्यादा
खुद को भुला कर मैंने
अपने दिल का जागीर बना
इश्क की फसल उगाई
इश्क की लहलहाती फसल को
मैं बर्बाद नहीं करना चाहती
तू मेरा चाँद है
तुम से कभी दूर होना नहीं चाहती।