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कीर्ति त्यागी

Romance

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कीर्ति त्यागी

Romance

अक्सर बरसती है बूंदें

अक्सर बरसती है बूंदें

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अक्सर बरसती है बूंदे मेरे आंगन में,

पर मुझे ही नहीं पता कि कब समा गई वो मेरे आंचल में।


शायद मुझसे कुछ कह रही थी बेतहाशा यूं ही रो रही थी,

मेरे आंचल को गले से लगा लिया था और मुख अपना छिपा लिया था।


कितनी नाजुक सी थी वो जब मैंने उनको छुआ था,

पर कुछ तो ऐसी एक कसक सी उठी मेरे मन में जब सुना मैंने उसका रूदन था।


वक्त बीत रहा था और वो बूंदे मुझमें समा रही थी,

कैसी ये कुदरत की माया थी जो मुझे मिटा रही थी।


आंचल मेरा भीग चुका था देखा तो एहसास हुआ था,

तब भी तो यही बूंदे थी जब तुने इसे मेरे बदन पर लपेटा था।


बूंदों का एहसास अब मुझे भा रहा था जैसे आंसूओं के साथ कोई कह रहा था,

गले से लग जाओ मेरे मैं पास ही तो हूं चलो अब नाव चलाओ साथ मेरे।


कुछ बूंदें मेरी अंखियों में भी थी।बह वो‌ भी रही थी जैसे कि कोई बूंदों की सखियां सी थी,

कह गई कितनी ही शिद्दत से मिलन होगा शायद बाद मुद्दत के सफर अभी तय करना है,

फिर आएगी इन अंखियों में शायद सुकून की निंदिया सी।


वक्त वक्त की बात है शायद बूंदों भी निकली है किसी की तलाश में,

वरना यू ही न गिरती हर आंगन में।बरसती हुई अंखियों से मुंह न छिपाती आंचल में।


बरसात अभी थम चुकी है पर अखियां अभी भारी है, 

शायद ये मौसम ही ऐसा है हर तरफ लाचारी है।


कभी बूंदें बरसती है तो कभी अखियां,

शायद ये एक जादू है जो सहती है अक्सर रतिया।


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