टंगी निगाहें
टंगी निगाहें
ठहरे रास्तों पर ठहरी निगाहें
प्रेम पिपासा में पगी निगाहें
रुक कर चलतीं चल कर रुकतीं
कहीं न पहुंचतीं
कहीं न थमती
आशाहस्त की रज्जु से लिपटीं
मुड़ते मोड़ों पर कदम पटकतीं
पलकों की कारा को तोड़ प्रतीक्षा द्वार पर ठिठकी निगाहें
सुनो ,कभी आओ ! तो उतार लेना
निम्बू -मिर्ची सी खूंटी पर
टंगी निगाहें ।
#love

