स्त्रीत्व का सूर्यत्व
स्त्रीत्व का सूर्यत्व
मेरे अस्तित्व की बात करते हो !
वो न 'तुम ' से है , न ‘ किसी ‘ ओर से है ।
वो बस मेरी ' सम्पदा ' है ।
तुम " सूर्य " हो ! तो मैं भी “ धरा “ हूँ ।
तुम्हारे अहम की सारी अग्नि ,
सारी उष्णता का तेज जज़्ब कर लेगी
--मेरी हरीतिमा।
हे ' सूर्य ' -तुम पुरुषत्व का पुंज हो ,
तो मैं भी ' स्त्रीत्व ' की सहनशीलता हूँ
यही मेरी स्त्री शक्ति की पहचान है।
भानु !कभी तेज से परे जा कर ,
शीतलता की कल्पना करना !
तब तुम अंतर से भावना -सापेक्ष ,
बाह्य से अहम - निरपेक्ष हो जाओगे ।
पर तुमसे पूर्व ही मैं तुम्हारी अर्धांगिनी ,
धरा - स्त्रीत्व के सूर्यत्व का चरम हूँ ।