कविता शीर्षक: तुम्हारा स्पर्श
कविता शीर्षक: तुम्हारा स्पर्श
सुनो कुछ कहूं??
तुम्हारा स्पर्श,
जैसे रूह तक उतर आया हो,
हर दर्द, हर खलिश,
जैसे किसी दुआ से मिटाया हो।
तुम्हारी खुशबू ने
जो हवा में बसाई थी बात,
वो एहसास मुझे,
मोहब्बत के करीब लायी थी रात।
जब तुम्हारे सीने पर
सर रखा मैंने चुपचाप,
वो सुकून ऐसा था,
जैसे मिल गया हो एक बेखौफ जवाब।
तुम्हारी बाहों की गिरफ्त,
सख्त होकर भी कोमल थी,
उसमें था एक यकीन,
जो हर बेचैनी से ग़ाफ़िल थी।
आंखों में बसे तुम्हारे एहसास,
हर ख्वाब को रोशन करते हैं,
तुम ज़िंदगी में रहो यूँ ही,
जैसे सांसें हर पल चलती हैं।
तुम्हारा होना,
मुझे मेरे होने का सबब देता है,
तुम्हारी मौजूदगी ही तो,
मेरे हर पल को मुकम्मल करता है।
हां! बस तुम्हारा स्पर्श......

