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कीर्ति त्यागी

Romance

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कीर्ति त्यागी

Romance

कविता शीर्षक: "अहसास"

कविता शीर्षक: "अहसास"

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सुनो कुछ कहूं??


अभी यहीं कुछ पल पहले

देखा तो था तुम्हें अपने सामने

उंगलियां छू रही थी तेरी हथेली को

ठंड का एहसास सा जागा था उनको।


मुस्कुरा रहे थे कुछ इस तरह

कहना हो जैसे कुछ अनकहा

आंखों में कुछ इकरार सा था

सच कहूं! मेरा भी दिल बेकरार था।


वो भीनी सी खुशबू आज भी तो बरकरार थी

मदहोश करने के लिए बारिश की फुहार थी

सुनो! आज भी तो तुमने डांट दिया

अनकही तकरार में प्यार जता दिया।


यूं आगोश में अपने

चुपके से क्यों समेट लिया

हर दर्द, हर उलझन को

अपने लम्हों में बुनके सिल लिया।


सांसों में घुल रही थी वो बात,

जो कभी लफ्जों में न कह सके थे हम।

तुमने मेरी खामोशी को पढ़ लिया,

और मुस्कान में बदल दिया हर गम।


वो छुअन, वो एहसास आज भी बाकी है,

जैसे रूह में बसी कोई अनदेखी मुलाकात बाकी है।

तेरे होने का वो मीठा सा वहम,

अब भी मेरे हर पल का साक्षी है।


हां! अभी यहीं कुछ पल पहले.....




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