Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Mayank Kumar 'Singh'

Romance

4.6  

Mayank Kumar 'Singh'

Romance

सौदा

सौदा

2 mins
536


नजरों ही नजरों में और कितना क़त्ल करोगी

हूं पहले से ही मुर्दा फ़िर भी कितना वार करोगी।


मोहब्बत वाली चिता में पहले ही धधक चुका हूं

अब क्या प्रहार करना जो पहले ही मर चुका हूं।


अब एक अवशेष शेष बचा उसका ही कुछ कर देना

जब कभी मेरा निश्चल,निकलंक प्रेम के किस्से तुझे रुलाए ,

तो फ़िर उसे किसी यमुना तट आंसू संग विसर्जित कर देना।


मान लूंगा मरने के बाद ही सही मोहब्बत कुछ कर पायीं

देर-सवेर ही सही पर दिल पर दस्तक़ बेजोड़ दे पायीं।


जिंदा रह कर जो बातें शायद मैं न कह पाए

भला हो अवशेषों का जो राख़ बन कह आए।


तुम खुश रहो , ख़ूब जियो इस सतरंगी दुनिया में

ऐसे ही व्यापार करो, ख़ूब करो अपने जैसे लोगों में।


पर याद है मुझे तुम जब आया करती थी

मुझसे लिपटकर खूब अधिकार जताया करती थी।


रचा-बसाकर न जाने कितने ख़्वाब दिखाया करती थी

सब जगह ऐसे ही मोहब्बत का व्यापार फैलाया करती थी।


सब थे तुम्हारे जैसे तभी तो इसमें रच बस गए थे

हम थोड़ा अलग थे शायद, इसलिए ऐ सहन न कर पाए थे।


वैसे कुछ इश्क़ बिस्तरे, वस्त्र सा बदलती थी

रोज नए प्रपंचों संग हम जैसों को ठगती थी

ग्रामीण दिल की बस्ती में आग लगाया करती थी !


गाँव-सा इश्क़ किया था खूब इसको ही समझा था

मुझे नहीं पता ऐ शहरी इश्क़ का किस्सा कुछ अलग सा था।


यहाँ दिल की नहीं ज़िस्म की सुनी जाती थी

गाँव-सा इश्क़ को नादानी समझी जाती थी।


मैं यह भी नहीं कह रहा सब तुम जैसे थे

ऐसे भी शहरी थे जो बिल्कुल गाँव जैसे थे।


अपने आशिक़ के लिए न जाने क्या वो कर जाए

अगर आशिक़ की जान पर कोई आफ़त हो,

तो आफ़त से भी भीड़ जाए।


पर जब पहली बार मिला था तुम तो न ऐसी थी

मेरे ख़ातिर तो दुनिया से भी लड़ती थी।


थोड़ा भी कोई मुझे साला, हरामी कहता था

मानो उस वक्त तुम्हारा रूप कोई दुर्गा सा था


मेरा बेटा, बाबू, जानु, सब सम्बोधन मेरे लिए थे

मेरा खाना, पीना, नहाना, सोना सब तेरे जिम्मे थे।


पर जिसे मैं प्रेम समझा था वह व्यापार सा था

जिसे राधा समझा था वह अनुबंधों सा था।


जब कभी दिल की गली में व्यापारी बन तुम आती थी

सांसों की गर्माहट ठंडी सी पड़ जाती थी।


तब भी मैं मोहब्बत को साकार करता था

पर मेरे संग हर पल बस व्यापार होता था


अब छोड़ो सब जिसका जो उधार हैं

उसको आभार संग सब सौंप देता हूं।


तुम्हारे दर्द के संग फ़िर उसी का हिस्सा होता हूं

अपनी माँ का बेटा हूं उसी में विलीन होता हूं।


अब जो कण-कण माँ का हैं उसे सौंप देता हूं

सच्ची मुहब्बत वाली दुनिया का हिस्सा होता हूं !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance