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Mayank Kumar 'Singh'

Romance

3  

Mayank Kumar 'Singh'

Romance

मैं तेरे लिए सब हार जाऊं

मैं तेरे लिए सब हार जाऊं

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तुम मेरी हस्ती हो

न जाने कौन सी 

मस्ती हो

तुम जब भी

बादलों सा हो जाती हो

मैं तेरी धरती बन जाता हूँ

तुम्हारी बारिश कि बूंदों से

अंजाने ही सही पर हाँ !

एक अलग ही मोहब्बत

से घुल-मिल जाता हूँ...

तू समंदर है ना इसलिए

किनारे से भी तुम्हें,

मिलना होता है..

जो रह गई थी बात अधूरी

उसे भी तो थोड़ा बहुत

एक अलग ही एहसास 

के साथ कहते रहना हैं !

तुम्हारी नाराज़गी से ही,

मैं ख़ुद की ओर ध्यान दे

पाता हूँ...

कि तुम नाराज़ नहीं हो

ये ख़ूब समझ पाता हूँ

कि तुम्हारी नाराज़गी में

ही एक साथ होने की बात

छिपी है... की कहीं कुछ

हो जाए शतरंज का खेल

कि मैं हार जाऊं वह सब

जो तुझे परेशान करता है 

कि मैं हो जाऊं तेरा इरशाद

ईशा ! की तुम फिर ये न कहो,

कि हाँ मैं थोड़ी सी अलग हूँ !!


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