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Kishan Negi

Romance

5.0  

Kishan Negi

Romance

बावरा मन मोरा

बावरा मन मोरा

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बावरा मन उड़ रहा उड़े जैसे चंचल पौन

इंस सागर की गहराई में मचल रहा कौन 

तरूणाई की चौखट पर कौन खड़ा है मौन 

भँवरा बन मँडराता है कलियों के आसपास

धीरे-धीरे हो रहा इस अनुभूति का अहसास।


रे पागल मन यहाँ किसका हुआ तू दीवाना 

कैसे बताऊँ तुझे कितना ज़ालिम है ज़माना 

तेरी आँखों से छलक रहा यौवन का पैमाना

चाहतों के वीराने मरुस्थल में क्यो है उदास 

क्या है प्रेम कर इस अनुभूति का अहसास।


रे मनुवा क्यों हैं तू बेचैन तनिक धीरज धार 

पंछी लौट चला है जिसके खातिर तू बेकरार 

यादों को चुराकर उड़ गया बादलों के पार 

जो रूठ गया बेवजह मत कर उसकी तलाश 

एकाकीपन में कर इस अनुभूति का अहसास ।


आवारा मन आना कभी मेरे ख्यालों के गाँव में 

नरम धूप ठहरती नीम की मखमली छांव में 

नशीली सांझ ठुमकती है बाँधकर पायल पाँव में

मादक हवा की बाहों में झूमता है अमलतास 

कुदरत कराती अपनी अनुभूति का अहसास ।

 



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