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Kishan Negi

Abstract Thriller

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Kishan Negi

Abstract Thriller

पूस की ठिठुरती रात

पूस की ठिठुरती रात

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पूस की ठिठुरती रात

इस बार फिर से घिर आई है मेरे आंगन में

साथ में लाई है हिमालय से छीनकर

बर्फीली हवाओं की ठंडी महक

पूस की इस रात को मालूम है

मेरा कंबल फिर से उधड़ गया है

सलीके से सीला था माँ ने जिसे पिछली पूस में

मां तो अब नहीं है पास मेरे

मगर उसके हाथों की नरम छुअन

पैबंद बनकर आज भी पुकारती है मुझे

मेरे फटे कंबल के सुरागों से

पूस की ठिठुरती रात में

अंधेरी रात का सन्नाटा चीरता है मेरे बदन को

ठंडी हवाओं की सरसराहट से

मेरा कंबल ठिठुर रहा है ठंड से

पूस की निष्ठुर रात ने

मेरे रक्त को निचोड़ कर रख दिया है

जैसे जवानी को बुढ़ापे ने

पूस की ठिठुरती रात

फिर से आएगी मेरे आंगन में अगले साल

और मैं फटे कंबल को लपेटकर

करूंगा इंतज़ार इसकी आहट का



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