दोस्त
दोस्त
दोस्त
तुम दोस्त हो तो हो
बाकी रिश्ते मिले
सब सौगात मे
दोस्त अपने खुद ही चुने
जिसे मैंने चुना
इसी दोस्ती की खातिर
तुमसे बाँटती हूँ न
सब कुछ
हँसी, मस्ती और मज़ाक
बस हक़ भी तुम पर है, है तो है
कभी सुना कर मेरा मन
हो जाती हूँ शांत
तो कभी लेती हूँ निशाना भी
तुम पर साध
कभी आवाज लगा कर बुला
लेती हूँ
बस अच्छा लगता है
लगता है, तो लगता है
इधर -उधर की बातें करना
कभी शिकायतें-शिकवे करना
तो कभी ये भी जाताना की
तुम पर विश्वास है,
विश्वास है तो है
हैरान भी हो जाती हूँ
जब कभी तुम भी परखते हो
आखिर किस बात पर शक
रखते हो ?
फिर तुमको खरी खोटी
सुनाती हूँ
पर फिर भी इंतजार है,
इंतजार है , तो है
कभी बहस, तो कभी कितनी
गहरी सी मन की बातें
तुमसे करती हूँ
सकून इस में मुझे है,
सकून है, तो है
पता नहीं
बस जो बात जैसी है
वैसी ही कह देती हूँ
किरदार को अपने
जैसा है वैसा ही
दिखाती हूँ
सहज़ से बनाये इन
रिश्तों को
मन से निभाती हूँ
अब निभाती हूँ
तो निभाती हूँ
लेकिन हाँ
यक़ीनन तुम्हारे
मुस्कुराने से
खुश होती हूँ
अब खुश होती हूँ,
तो होती हूँ
दोस्त बाँट लेते हैं गम,
ख़ुशी, और छोटे से छोटे पल
सब आदतों को जानकर
सारी हकीकत होती है सामने
फिर बस
बेफिक्र हो जाती हूँ
बेफिक्र तुमसे हूँ तो हूँ
क्योंकि दोस्त हूँ
और बस दोस्त हूँ तो हूँ।