लोकतंत्र
लोकतंत्र
अधिकार दिये हैं जनता को चुने प्रतिनिधि देकर वो मत
लेकिन मत लेकर भी तो बिक जाते वो कुर्सी की खातिर
खरीद लिया जाता है देकर खोका औऱ पेटी
बँटी हुई जातियों के मत का पहले सौदा होता है
बेच जमीर उम्मीदवार फिर खुद
की नीलामी करता है
लोकतंत्र की चिन्दी-चिन्दी उड़ती हैं बंद दीवारों में
स्वप्न दिखा के प्यारे-प्यारे लूटें वो
भरे बाज़ारों में
सत्ता के हाथों खेल रोज खेले जाते हैं झूठे औऱ सच्चे
मिल बाँट के खाते हैं बनकर मालिक रसदार मलाई के लच्छे
विकास की सारी सीमा पार वो
कर जाते हैं
गगन चुम्बी हो जाती कीमत
सब उनका ही हो जाता है
लोकतंत्र के लोग ठगे से जादू सारा देख रहे
लुटे-पिटे औऱ ठगे हुए से सत्ता के हालात देख रहे
निरुपाय देकर मतदान दशकों
से तमाशा देख रहे
देकर ढ़ोल मदारी को बन कर
बन्दर से नाच रहे
नाच मेरी बुलबुल की धुन पर
थिरक -थिरक नाच रहे।