कविता होली के रंग
कविता होली के रंग
होली रंग बरसे
पलाश के फूलों से वसंती हुई धरा
होली के रंगों से मन मेरा है रंगा...
दहकते शोले का रंग टेसू में इसीलिए है प्रकृति ने शायद भरा....
अगन सी कोई वो रह रह कर वो
दिल में रहा उठा
प्रीत की उमंगों ने फिर से मेरे हिय को हसीन यादों से भरा....
सतरंगी सपने बन कर ठंडी फुआर की तरह
उन्होंने आज फिर हौले से मेरे तन मन को है छुआ...
कोई तो बात है इन गहरे सिंदूरी से पलाश पुष्पों में...
जाने क्यों हर बार इनमें रंग प्यार का ही खिला...
हो कर पल्लवित बिखेर देते रूमानियत सी
बेचैन कितना कर दिया...
सिंदूरी से सपनों को पलकों पर
सजा दिया
पलाश की महक और उसका रंग अनूठा सा आभास है....
फागुन के रंग मानो इससे ही तो गुलजार है
सुरमई से सपने होंठों में मुस्कान मीठी घोल देते हैं....
सरगम सी कोई धड़कनों में ये
उडेल देते हैं
मन के तारों में गीतों की झनकार
सी छेड़ देते हैं...
हाँ रंग होली के...
पलाश की तरह
कोई अगन सी हिय में मेरे...
गहरे से सुलगा देते हैं..