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Monika Raghuwanshi

Abstract

4.5  

Monika Raghuwanshi

Abstract

परिवर्तन

परिवर्तन

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परिवर्तन है परिवर्तन है,

उठो देखो नवजीवन है,

अंकुर फूटें,धरा हुई हल्की,

ऐसा सुंदर सृष्टि सृजन है।


अम्बर भी चित्रकार बना,

पल पल वो अवचेतन है।

मेध कर रहे नृत्यक्रियाएँ,

इतना मधुर ये गुंजन है।


सरिता के उन्माद वेग से

जल-तरंग ध्वनि में गर्जन है।

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लतायें है आज प्रफ़ुल्लित,

अलौकिक मन-रंजन है।


शून्य हुआ जीवन का तम,

ऐसा दीप्त समापन है।

पावस का स्नेह निमंत्रण,

मोहक और मनभावन है।


नित्य ये करते उद्घोषित,

जो जीवन का आवर्तन है।

धवलित है ये तृणमय भूमि

ऐसा सुंदर सृष्टि सृजन है!


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