कब तक थमी रहोगी ?
कब तक थमी रहोगी ?
हे सखी, कब तक थमी रहोगी ?
सिर झुकाये चलती रहोगी ?
जीवन तुम्हारा है, या उसका
कब तक इस संशय में जियोगी ?
खुद छू के देख सकती हो दुनिया,
फिर भी पिंजरे में जीवन बिताओगी?
उसके आराम के मोह में कब तक
अपनी नींद के मोल लगाओगी?
उसकी आँखो के ड़र से कब तक,
अपने ना होने का एहसास कराओगी?
उसके ग़ुरूर को, माथे पे सजा तुम
कब तक अपने ज़ख़्म छिपाओगी?