वो यादें वो ख़्याल!!
वो यादें वो ख़्याल!!
यूँ तो आज भी जब वो ख्याल आता है,
कोई हौले से वो राज़ गुनगुनाता है।
बंद आँखों से देखूँ मैं सुइयां घडी की,
वो पीछे और पीछे ही भागती है,
जाने कैसे मन वो टिक टिक झेल पाता है।
कोई हौले से वो राज़ गुनगुनाता है।
सावन की रिमझिम फिर छेड़ती है वो फ़साना,
उन यादों का आना और आ के वापस ना जाना,
गुजरे लम्हों में मन कहीं भटक जाता है।
कोई हौले से वो राज़ गुनगुनाता है।
किस्से कहानी शिकवे शिकायतों का है पिटारा,
कुछ छपे हुये है मानसपट पे, कुछ छुट गये आवारा,
जो बीत गया, वो पलट के नहीं आता है।
कोई हौले से वो राज़ गुनगुनाता है।
यूँ तो आज भी जब वो ख्याल आता है,
कोई हौले से वो राज़ गुनगुनाता है।