तुम्हारे हाथों का नरम स्पर्श
तुम्हारे हाथों का नरम स्पर्श
दिसम्बर की ठंडी-ठंडी हवाएँ
मचलती हैं जाड़ों की गुनगुनी धूप में
और तुम्हारे हाथों का नरम स्पर्श
जैसे बसंत में मादक हवा का एक चंचल झोंका
जो फुसफुसा कर हर रहस्य को खोलता है
जिसे केवल या तो तुम्हारा दिल
या मेरा दिल ही समझता है
तुम्हारा यह नरम स्पर्श
मेरे दिल को छूकर उतर जाता है
मेरी आत्मा की असीम गहराइयों में
और फिर मैं महकता हूँ तुम्हारे जज़्बात बनकर
अविरल बहती तुम्हारी गर्म सांसों में
काश! ये मखमली अहसास
यूं ही मिलता रहे सदियों तक

