मैं क्या लिखूं ?
मैं क्या लिखूं ?
चाहता हूँ कुछ लिखूं , पर सोचता हूँ क्या लिखूं ,
दिल में है जो वो लिखूं,या लब पे है जो वो लिखूं।
सोये हुए जज्बातो को, एक लफ्ज़ दूँ जो बयान हो
टूटे हुए अरमानो को, एक शक्ल दूँ दरमायान हो।
बिखरी हुई सी चाह को,बैठा हुआ मैं बटोरता
भूले हुए से राह पर, मैं बेलगाम सा दौड़ता।
बंद एक संदूक में, मैं अन्धकार को तरेरता
खुद के तलाश में अपने ही,अक्स को मैं कुरेदता।
चल जाऊं जो मैं चल सकूं,ले आऊं मैं जो ला सकूं
बीते कुछ लम्हों में मैं, लौट जाऊं जो मैं जा सकूं।
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कुछ अनकही सी रह गयी, कह भी दूँ जो मैं कह सकूं
दो घड़ी बस साथ तेरे, मैं रो भी लूँ जो मैं रो सकूं।
एक बार खुद को जान कर,एक बार तुझ को मान कर
एक बार तेरे साथ मैं, रह भी लूँ जो मैं रह सकूं।
चाहता हूँ कि कुछ लिखूं,पर सोचता हूँ के क्या लिखूं,
दिल में है जो वो लिखूं, या लब पे है जो वो लिखूं।