इश्क में तेरे
इश्क में तेरे
इश्क़ में तेरे हद से गुज़र जाऊँगी या
या बिखर जाऊँगी या संवर जाऊँगी...!
बहर ए उल्फ़त की गहराई देखूँगी मैं
फिर रग ए जॉं में तेरी उतर जाऊँगी...!
मैं मुसाफ़िर हूँ और मेरी मंज़िल है तू
तू मिलेगा जहाँ भी ठहर जाऊँगी...!
हमसे राज ए तबस्सुम ना पूछे कोई
कुछ कहूँगी तो अश्कों से भर जाऊँगी...!
हिज्र का ज़हर मुझको पिलाना नहीं
चंद लम्हों में वर्ना मैं मर जाऊँगी...!
तेरा दिल आशियाना मेरा बन चुका
छोड़ कर इसको मैं अब किधर जाऊँगी...!
वादा लीना ने तुझसे किया है यही
ज़िंदगी नाम तेरे मैं कर जाऊँगी …!