प्रियतम घर आ जाओ
प्रियतम घर आ जाओ
आम्र कुंज सब गए बौर से, और न देन लगाओ ,
फागुन का महीना है आया, प्रियतम घर आ जाओ ।
बनी वियोगिनी पर दर भटकूं थोड़ा तरस तो खाओ ,
मंत्र प्रीत का घोले फागुन, प्रियतम घर आ जाओ ।
सूनी माँग तेरे बिन साजन, आखें बिन कजरा के ,
चूड़ी बिन है मोरी कलाई, और केश गजरा के ।
आओ मीत शीघ्र घर आओ, मेरा रूप सजाओ ,
छटपट तड़पे प्रीत बेचारी, प्रियतम घर आ जाओ ।।
मन में टीस उठे रुक रुक कर, सम्हाले नहीं संभाले ,
ये सारा जीवन अरु यौवन, प्रियतम तेरे हवाले ।
सेज सजाये बैठी हूं मैं, अब ना तुम तड़पाओ ।
फागुन हमको खूब सताए, प्रियतम घर आ जाओ ॥
ऐसी बहे बयार सुगंधित, नशा भरे कण कण में ।
दिल के अरमा महक रहे हैं, हूक उठे यौवन में ।
खुशबू से कहीं विखर ना जाये, दौड़ के तुम आ जाओ ।
फागुन का महीना है आया, प्रियतम घर आ जाओ ।।