गीता मर्म
गीता मर्म
।। भजन ।।
करके गृहस्थी के सभी कारज , प्रभू का ध्यान कर ।
जिस ब्रह्म से उत्पन्न तू , उस ब्रह्म का नित ध्यान कर ।।
पुत्रादि जग कर्म कर , करके यजन निज धर्म कर ।
वैराग्य जब जागे हृदय , सन्यास अनुसंधान कर ।।
सब ब्रह्म का सब ब्रह्म से ,
सब ब्रह्म को तू सौंप दे ।
ब्रहमार्पण करके स्वयं चरणों में उसकी सौंप दे ।।
आसक्ति रहित हो वन में जा ,
संसार से तू पय
ान कर ।
जिस ब्रह्म से उत्पन्न तू उस ,
ब्रह्म का तू ध्यान कर ।।
अव्यक्त जगत का आदिकारण ,
वह सनातन ब्रह्म है ।
है अजन्मा सूक्ष्म वो इस श्रृष्टि का आरम्भ है ।।
उस पुरातन पुरुष का निज ,
मुख स तू गुणगान कर ।।
जिस ब्रह्म से उत्पन्न तू उस ,
ब्रह्म का तू ध्यान कर ।।