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Rajendra Rajjan saral

Inspirational

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Rajendra Rajjan saral

Inspirational

गीता मर्म

गीता मर्म

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          ‌।। भजन ।।

करके गृहस्थी के सभी कारज , प्रभू का ध्यान कर ।

जिस ब्रह्म से उत्पन्न तू , उस ब्रह्म का नित ध्यान कर ।। 

पुत्रादि जग कर्म कर , करके यजन निज धर्म कर ।

वैराग्य जब जागे हृदय , सन्यास अनुसंधान कर ।।


सब ब्रह्म का सब ब्रह्म से , 

               सब ब्रह्म को तू सौंप दे ।

ब्रहमार्पण करके स्वयं चरणों में उसकी सौंप दे ।।

आसक्ति रहित हो वन में जा ,

                संसार से तू पय

ान कर ।

 जिस ब्रह्म से उत्पन्न तू उस ,

               ब्रह्म का तू ध्यान कर ।।

अव्यक्त जगत का आदिकारण ,

                वह सनातन ब्रह्म है ।

है अजन्मा सूक्ष्म वो इस श्रृष्टि का आरम्भ है ।।

उस पुरातन पुरुष का निज ,

              मुख स तू गुणगान कर ।।

जिस ब्रह्म से उत्पन्न तू उस ,

               ब्रह्म का तू ध्यान कर ।।



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