अकुलाया बौराया तन बदन
अकुलाया बौराया तन बदन
इन दिनों अकुलाया बौराया सा है मन ,
प्रिय के आलिंगन को तत्पर है बदन !
ह्रदय में खिलता जाए है कोई मधुबन,
कभी मंद तो तीव्र होती जा रही तपन !
आया है फिर मदमस्त बसंत मनभावन,
महमहाया व गदराया सा विकल यौवन !
कैसी मीठी सी लागे बोली कोकिला की,
कैसे तो अगन सी लगाए ये शीतल पवन!
धीरे-धीरे कान में ज्यूँ कहता कोई म्हारे,
नयन क्यों मूँदे हैं मेरे आज शाम सकारे !
इन नयनन में बस गए मोरे सैंया साँवरे ,
प्रियतम भूल गये वो स्वर्णिम दिन हमारे !
इन दिनों अकुलाया बौराया सा है मन ,
प्रिय के आलिंगन को तत्पर है बदन !
ह्रदय में खिलता जाए है कोई मधुबन,
कभी मंद तो तीव्र होती जा रही तपन !
अन्तर कितना हुआ आज और कल को,
सोचो तो तनिक गौर से विशेष पल को !
सपन कभी जो देखे हमदोंनो ने मिलके,
वायदे किये थे जो हर एक पल छिन के !
मतवारे प्रियतम दो संदेश अपने आवन,
ज़ब पधारो, वो दिन होगा सबसे पावन!
मधुर मधुर मधुमास लागे मोहे सुहावन,
आओ साजन,भर मांग मुझे बनाओ सुहागन !