विवाहेतर सम्बंध
विवाहेतर सम्बंध
जाने क्यू तुमने छोड़ दिया, यूं मुंह को अपने मोड़ लिया
दो दिन के चमकते चाहत में, वर्षो का रिश्ता तोड़ दिया
कैसे तुमको समझाऊँ मैं, उसे अब भी कितना चाहूँ मैं
बस तेरी ही यादों में, ये दिन ये रात बिताऊँ मैं
जो सपने हमने देखें थे, कुछ पक्के थे पर कच्चे भी थे
हम जी लेते अपनी मर्ज़ी से, हर रोज़ सिरहाने रखते थे
जीवन ने कैसा मोड लिया, मझधार में नैया छोड़ दिया
अब कैसे पहुंचे उस पार को हम, माझी ने पतवाड़ तोड़ दिया
हमने जो कसमे खाई थी, मैंने तो सभी निभाई थी
पर तेरी कमजोरी से, टूटी जो डोर बंधाई थी
तू जिस तक जाकर पहुंचा है, क्या सीरत में मुझसे अच्छा है
रंग रूप धूल जाए तो फिर, क्या रूप ये उसका सच्चा है
जीवन से जो तुझे पाना था, क्या इस रिश्ते में मिला नहीं
अपने घर को खुद ही तोड़ा, क्या इस बात का तुझको गिला नहीं
जिसे चाँद समझ तू बैठा है, वो तेरे जीवन पर धब्बा है
ना दाग कभी ये जाएगा, आचरण पर लगा वो बट्टा है
तू एक दिन यूं पछताएगा, वो छोड़ के जिस दिन जाएगा
तब फिरना होगा बेकार तेरा, यहाँ ना कुछ भी पाएगा
अब भी है वक़्त सम्हल जाओ, घर उल्टे पाँव चले आओ
है पाप का गर जो बोध तुम्हें , प्रायश्चित से ना कतराओ।