हम सब कुएं के मेंढक हैं
हम सब कुएं के मेंढक हैं
हम सब कुएं के मेंढक है,
अपनी सीमा में बंधे हुए
हमें बंधा रहना अच्छा लगता है,
यह झूठा संसार सच्चा लगता है
हमें प्यारी है हमारी घिरी दुनिया
जहां चारों ओर से हमारी ही
आवाज़ प्रतिध्वनित होकर
दीवारों की चोट खाकर
चारों दिशाओं से टकराकर
वापस हम तक आती है
हमें लगता है जैसे हमने
सारा संसार घूम लिया
उछल कर आसमान चुम लिया
मगर जब सच से सामना होता है
हक़िकत से नज़रें चार होती है
तब ये एहसास होता है कि
सब कुछ एक मिथक जैसा है
तब एक ही झटके में जैसे
अपना सपना टूट जाता है
और हमारी आखिरी छलांग
अधूरी रह जाती है,
उसे ज़मीन नही मिलती
बस एक झलक ही मिलती है
उस सुंदर संसार की जो
हमारी सोच और पहुंच से कोसों दूर है।