कामिनी
कामिनी
कल मैंने तुम्हे झरने तले
नहाते हुए देखा था
ऐसा लगा जैसे मैने
रती को साक्षात देख लिया हो
तेरी घनी काले केशों से
जब पानी की बूंदें टपकी
और तेरी गोरी मखमली पीठ से
फिसल कर तेरी कमर तक पहुंची
तब ऐसा लगा जैसा मानो
चांदी तेरी जांघो से होता हुआ
सागर मे समा रहा हो
तेरे गालों पर मोतियों की तरह
बूंदें बिखरती रही
तेरे होठों की लाली को
जैसे और चमकीली कर रही हो
फिर कंधे से फिसल कर जो
सीने तक बूंदें आयी
तेरे यौवन पर और निखार लाई
तेरे नाभि तक आते आते
वो भी अपने पथ से भटक गया
उस छोटे काले तिल को
देखकर वो वही अटक गया
तेरा पूरा शरीर ही स्वर्ण सा फिर हो गया
तुझे छू कर वो जल भी जैसे जीवित हो गया
कोइ ऐसा नही जो तुझे
वैसे देखे और खुद को रोक सके
खुद को तेरे क़ैद मे आने ना दे
और अपना मुंह मोड सके
वो शीशा है, हीरा है य कुछ और
एक झील है जैसे जिसमे
तैरने से ना खुद को कोइ रोक सके
तेरे कंगन, तेरी चूड़ी, तेरी बिछिया
तेरी पायल, तेरा हार तेरी नथिया
सब मुझको तेरी ओर खींचते हैं
मैं आंखे बंद कर लुं
लौट के चला जाउं वहा से
मगर वो दृश्य मेरे पांव को जकड़े रहते हैं।