कोरा कागज़
कोरा कागज़
मैं कोरा कागज़ नहीं
और तू मेरी कलम नहीं
मेरी किस्मत मैंने पहले ही लिख ली
इस बात का तुझे इल्म नहीं।
अपनी मर्ज़ी के रंगों से
भर लिया है मैंने खुद को
तू चाहे अब कुछ भी कर ले
अब फर्क न पड़ना मुझको।
मुझ पर लिखी स्याही को
अब कैसे तुम मिटाओगे
चाहे ऊपर लिखदो कुछ भी
पुराना लिखा कैसे मिटाओगे।
मैं वो पन्ना नहीं
जो हवा के साथ बह जाएगा
मैं तो वो टुकड़ा हूँ
जो तेज़ हवाओं को सह जायेगा।
देखना है कब तक
तू मुझको छेदेगा
टुकड़ा टुकड़ा जुड़ कर भी
हर बार कुछ नया ही निकलेगा।
बहुत सह लिया
बस अब और ज़ुल्म नहीं
ये पन्ना कब का उड़ चूका
इस बात का तुझे इल्म नहीं
मैं कोरा कागज़ नही
और तू मेरी कलम नहीं।
पहले मेरी ज़िन्दगी
एक कोरा कागज़ ही थी
मेरी क्या औकात जो के कुछ बोल सकूँ।
मैं तो बस एक कोरा कागज़ ही थी
पर जब तूने मुझको
अपने गन्दे रंगों में भरना चाहा
मैं भी किसी न किसी का सहारा लेकर।
अगल बगल में छुपता रहा
अब देख तेरे सामने ही हूँ
बिना किसी सहारे के
अगर लड़खड़ाई भी तो संभल जाऊँगी।
बिना तेरे सहारे के
अब ये एक पन्ना
पूरी किताब बन चुका है
और तेरे हिस्से का किस्सा
कब का फट चुका है।
ज़िन्दगी के खूब रंग
इसमें भर दिए हैं
पर तेरा कोई रंग न होगा इसमें
कई इन्तज़ाम कर दिए हैं।
मैंने खुद को ढाल लिया है
किसी तरह खुद को संभाल लिया है
अब वो किताब मेरी है।
उसे तुम जैसो से बचाना सीख लिया है
वो पन्ने का अस्तित्व कब का मिट चुका
ये बात तुझे मालूम नहीं
वो एक पन्ना आज एक किताब है।
इस बात का तुझे इल्म नहीं
मैं कोरा कागज़ नहीं
और तू मेरी कलम नहीं।

