दौर
दौर
मैंने कुछ कदम बढ़ाए
अपने सपनों की ओर
मेरे अपनों ने ही चलाया
साज़िशों का एक दौर
नफरत हो गयी है अब उनसे
इस क़दर
मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छा गए
रिश्ते प्यार के मैं निभा न सकी
वो दुश्मनी निभा गए
झूठी मुस्कान लिए
अब उनसे मिलना, मुश्किल लगता है
उनके फरेब को जानकर
यूँ प्यार जताना भी फरेब लगता है
सोचती हूँ हर दफा
कि शायद वो सही होंगे
गलतफहमी तो हमें थी..
कि उनकी ज़िंदगी में
शामिल हम कहीं होंगे
अब सब कुछ बदल गया है
पहले जैसे हम नहीं
उन्हें जानकर भी अब अंजान बनना
इतना हम में अब दम नहीं
प्यार मोहब्बत की बातें
अब झूठी लगती हैं
खैर, जो भी है, मेरा सच है
उन्हें ये पलक
आज कल रूठी लगती है।