STORYMIRROR

Palak Inde

Abstract Drama Tragedy

4  

Palak Inde

Abstract Drama Tragedy

दौर

दौर

1 min
310

मैंने कुछ कदम बढ़ाए

अपने सपनों की ओर

मेरे अपनों ने ही चलाया

साज़िशों का एक दौर

नफरत हो गयी है अब उनसे

 इस क़दर 


मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छा गए

रिश्ते प्यार के मैं निभा न सकी

वो दुश्मनी निभा गए

झूठी मुस्कान लिए

अब उनसे मिलना, मुश्किल लगता है


उनके फरेब को जानकर

यूँ प्यार जताना भी फरेब लगता है

सोचती हूँ हर दफा

कि शायद वो सही होंगे

गलतफहमी तो हमें थी..


कि उनकी ज़िंदगी में 

शामिल हम कहीं होंगे

अब सब कुछ बदल गया है

पहले जैसे हम नहीं

उन्हें जानकर भी अब अंजान बनना


इतना हम में अब दम नहीं

प्यार मोहब्बत की बातें

अब झूठी लगती हैं

खैर, जो भी है, मेरा सच है


उन्हें ये पलक

आज कल रूठी लगती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract